Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas ।।17.2।। व्याख्या -- [अर्जुनने निष्ठाको जाननेके लिये प्रश्न किया था? पर भगवान् उसका उत्तर श्रद्धाको लेकर देते हैं क्योंकि श्रद्धाके अनुसार ही …
Bhagavad Gita 17.1
Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas ।।17.1।। व्याख्या -- ये शास्त्रविधिमुत्सृज्य ৷৷. सत्त्वमाहो रजस्तमः -- श्रीमद्भगवद्गीतामें भगवान् श्रीकृष्ण और …
Bhagavad Gita, Chapter 17
Sant Tukaram
दक्षिणके देहूग्राममें संवत् १६६५ में तुकारामजीका जन्म हुआ था। इनके पिताका नाम बोलोजी और माताका नाम कनकाबाई था। तेरह वर्षकी अवस्थामें पिताने इनका विवाह कर दिया, किंतु इनकी पत्नी रखुमाईको दमेकी बीमारी …
Chokhamela
चोखा मेळा महार जातिके थे। मंगलवेढ़ा नामक स्थानमें रहते थे। बस्तीसे मरे हुए जानवर उठा ले जाना ही इनका धंधा था। बचपनसे ही ये बड़े सरल और धर्मभीरु थे। श्रीविठ्ठलजीके दर्शनोंके लिये बीच-बीचमें ये पण्ढरपुर …
Bhagavad Gita 16.24
Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas ।।16.24।। व्याख्या -- तस्मात् शास्त्रं प्रमाणं ते कार्याकार्यव्यवस्थितौ -- जिन मनुष्योंको अपने प्राणोंसे मोह होता है? वे प्रवृत्ति और …
Bhagavad Gita 16.23
Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas ।।16.23।। व्याख्या -- यः शास्त्रविधिमुत्सृज्य वर्तते -- जो लोग शास्त्रविधिकी अवहेलना करके शास्त्रविहित यज्ञ करते हैं? दान करते हैं? …
Bhagavad Gita 16.22
Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas ।।16.22।। व्याख्या -- एतैर्विमुक्तः कौन्तेय ৷৷. ततो याति परां गतिम् -- पूर्वश्लोकमें जिनको नरकका दरवाजा बताया गया है? उन्हीं काम? …
Bhagavad Gita 16.21
Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas ।।16.21।। व्याख्या -- कामः क्रोधस्तथा लोभस्त्रिविधं नरकस्येदं द्वारम् -- भगवान्ने पाँचवें श्लोकमें कहा था कि दैवीसम्पत्ति मोक्षके …
Bhagavad Gita 16.20
Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas ।।16.20।। व्याख्या -- आसुरीं योनिमापन्ना ৷৷. मामप्राप्यैव कौन्तेय -- पीछेके श्लोकमें भगवान्ने आसुर मनुष्योंको बारबार पशुपक्षी आदिकी …
Bhagavad Gita 16.19
Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas ।।16.19।। व्याख्या -- तानहं द्विषतः क्रूरान्संसारेषु नराधमान् -- सातवें अध्यायके पंद्रहवें और नवें अध्यायके बारहवें श्लोकमें वर्णित …
Bhagavad Gita 16.18
Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas ।।16.18।। व्याख्या -- अहंकारं बलं दर्पं कामं क्रोधं च संश्रिताः -- वे आसुर मनुष्य जो कुछ काम करेंगे? उसको अहङ्कार? हठ? घमण्ड? काम और …
Bhagavad Gita 16.17
Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas ।।16.17।। व्याख्या -- आत्मसम्भाविताः -- वे धन? मान? बड़ाई? आदर आदिकी दृष्टिसे अपने मनसे ही अपनेआपको बड़ा मानते हैं? पूज्य समझते हैं …
Bhagavad Gita 16.16
Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas ।।16.16।। व्याख्या -- अनेकचित्तविभ्रान्ताः -- उन आसुर मनुष्योंका एक निश्चय न होनेसे उनके मनमें अनेक तरहकी चाहना होती है? और उस एकएक …
Bhagavad Gita 16.15
Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas ।।16.15।। व्याख्या -- आसुर स्वभाववाले व्यक्ति अभिमानके परायण होकर इस प्रकारके मनोरथ करते हैं, -- आढ्योऽभिजनवानस्मि -- कितना धन हमारे …