Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas ।।18.78।। व्याख्या -- यत्र योगेश्वरः कृष्णो पार्थो धनुर्धरः -- सञ्जय कहते हैं कि राजन जहाँ अर्जुनका संरक्षण करनेवाले? उनको सम्मति …
Bhagavad Gita 18.77
Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas ।।18.77।। व्याख्या-- तच्च संस्मृत्य ৷৷. पुनः पुनः-- सञ्जयने पीछेके श्लोकमें भगवान् श्रीकृष्ण और अर्जुनके संवादको तोअद्भुत बताया? पर यहाँ भगवान्के …
Bhagavad Gita 18.76
Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas ।।18.76।। व्याख्या -- राजन्संस्मृत्य ৷৷. मुहुर्मुहुः -- सञ्जय कहते हैं कि हे महाराज भगवान् श्रीकृष्ण और अर्जुनका यह बहुत अलौकिक? …
Bhagavad Gita 18.75
Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas ।।18.75।। व्याख्या -- व्यासप्रसादात् श्रुतवान् -- सञ्जयने जब भगवान् श्रीकृष्ण और महात्मा अर्जुनका पूरा संवाद सुना? तब वे बड़े प्रसन्न …
Bhagavad Gita 18.74
Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas ।।18.74।। व्याख्या -- इत्यहं वासुदेवस्य पार्थस्य च महात्मनः -- सञ्जय कहते हैं कि इस तरह मैंने भगवान् वासुदेव और महात्मा पृथानन्दन …
Bhagavad Gita 18.73
Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas ।।18.73।। व्याख्या -- नष्टो मोहः स्मृतिर्लब्धा त्वत्प्रसादान्मयाच्युत -- अर्जुनने यहाँ भगवान्के लिये अच्युत सम्बोधनका …
Bhagavad Gita 18.72
Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas ।।18.72।। व्याख्या -- कच्चिदेतच्छ्रुतं पार्थ त्वयैकाग्रेण चेतसा -- एतत् शब्द अत्यन्त समीपका वाचक होता है और यहाँ अत्यन्त समीप …
Bhagavad Gita 18.71
Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas ।।18.71।।व्याख्या -- श्रद्धावाननसूयश्च৷৷. पुण्यकर्मणाम् -- गीताकी बातोंको जैसा सुन ले? उसको प्रत्यक्षसे भी बढ़कर पूज्यभावसहित वैसाकावैसा माननेवालेका …
Bhagavad Gita 18.70
Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas ।।18.70।। व्याख्या -- अध्येष्यते च य इमं धर्म्यं संवादमावयोः -- तुम्हारा और हमारा यह संवाद शास्त्रों? सिद्धान्तोंके साररूप धर्मसे …
Bhagavad Gita 18.69
Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas ।।18.69।। व्याख्या -- न च तस्मान्मनुष्येषु कश्चिन्मे प्रियकृत्तमः -- जो अपनेमें लौकिकपारलौकिक प्राकृत पदार्थोंकी महत्ता? लिप्सा? …
Bhagavad Gita 18.68
Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas ।।18.68।। व्याख्या -- भक्तिं मयि परां कृत्वा -- जो मेरेमें पराभक्ति करके इस गीताको कहता है। इसका तात्पर्य है कि जो रुपये? मानबड़ाई? …
Bhagavad Gita 18.67
Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas ।।18.67।। व्याख्या -- इदं ते नातपस्काय -- पूर्वश्लोकमें आये सर्वधर्मान्परित्यज्य मामेकं शरणं व्रज -- इस सर्वगुह्यतम वचनके …
Bhagavad Gita 18.66
Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas ।।18.66।। व्याख्या -- सर्वधर्मान्परित्यज्य मामेकं शरणं व्रज -- भगवान् कहते हैं कि सम्पूर्ण धर्मोंका आश्रय? धर्मके निर्णयका विचार …
Bhagavad Gita 18.65
Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas ।।18.65।। व्याख्या -- मद्भक्तः -- साधकको सबसे पहले मैं भगवान्का हूँ इस प्रकार अपनी अहंता(मैंपन) को बदल देना चाहिये। कारण कि बिना …
Bhagavad Gita 18.64
Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas ।।18.64।। व्याख्या -- सर्वगुह्यतमं भूयः श्रुणु मे परमं वचः -- पहले तिरसठवें श्लोकमें भगवान्ने गुह्य (कर्मयोगकी) और गुह्यतर …