Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas ।।17.15।। व्याख्या -- अनुद्वेगकरं वाक्यम् -- जो वाक्य वर्तमानमें और भविष्यमें कभी किसीमें भी उद्वेग? विक्षेप और हलचल पैदा करनेवाला न …
Bhagavad Gita 17.14
Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas ।।17.14।। व्याख्या -- देवद्विजगुरुप्राज्ञपूजनम् -- यहाँ देव शब्द मुख्यरूपसे विष्णु? शङ्कर? गणेश? शक्ति और सूर्य -- इन पाँच …
Bhagavad Gita 17.13
Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas ।।17.13।। व्याख्या -- विधिहीनम् -- अलगअलग यज्ञोंकी अलगअलग विधियाँ होती हैं और उसके अनुसार यज्ञकुण्ड? स्रुवा आदि पात्र? बैठनेकी दिशा? …
Bhagavad Gita 17.12
Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas ।।17.12।। व्याख्या -- अभिसन्धाय तु फलम् -- फल अर्थात् इष्टकी प्राप्ति और अनिष्टकी निवृत्तिकी कामना रखकर जो यज्ञ किया जाता है? वह राजस …
Bhagavad Gita 17.11
Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas ।।17.11।। व्याख्या -- यष्टव्यमेवेति -- जब मनुष्यशरीर मिल गया और अपना कर्तव्य करनेका अधिकार भी प्राप्त हो गया? तो अपने वर्णआश्रममें …
Bhagavad Gita 17.10
Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas ।।17.10।। व्याख्या -- यातयामम् -- पकनेके लिये जिनको पूरा समय प्राप्त नहीं हुआ है? ऐसे अधपके या उचित समयसे ज्यादा पके हुए अथवा जिनका …
Bhagavad Gita 17.9
Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas ।।17.9।। व्याख्या -- कटु -- करेला? ग्वारपाठा आदि अधिक कड़वे पदार्थ अम्ल -- इमली? अमचूर? नींबू? छाछ? सड़न पैदा करके बनाया …
Bhagavad Gita 17.8
Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas ।।17.8।। व्याख्या -- आयुः -- जिन आहारोंके करनेसे मनुष्यकी आयु बढ़ती है सत्त्वम् -- सत्त्वगुण बढ़ता है बलम् …
Bhagavad Gita 17.7
Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas ।।17.7।। व्याख्या -- आहारस्त्वपि सर्वस्य त्रिविधो भवति प्रियः -- चौथे श्लोकमें भगवान्ने अर्जुनके प्रश्नके अनुसार मनुष्योंकी निष्ठाकी …
Bhagavad Gita 17.6
Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas ।।17.6।। व्याख्या -- अशास्त्रविहितं घोरं तप्यन्ते ये तपो जनाः -- शास्त्रमें जिसका विधान नहीं है? प्रत्युत निषेध है? ऐसे घोर तपको …
Bhagavad Gita 17.5
Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas ।।17.5।। व्याख्या -- अशास्त्रविहितं घोरं तप्यन्ते ये तपो जनाः -- शास्त्रमें जिसका विधान नहीं है? प्रत्युत निषेध है? ऐसे घोर तपको …
Bhagavad Gita 17.4
Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas ।।17.4।। व्याख्या -- यजन्ते सात्त्विका देवान् -- सात्त्विक अर्थात् दैवीसम्पत्तिवाले मनुष्य देवोंका पूजन करते हैं। …
Bhagavad Gita 17.3
Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas ।।17.3।। व्याख्या -- सत्त्वानुरूपा सर्वस्य श्रद्धा भवति भारत -- पीछेके श्लोकमें जिसे स्वभावजा कहा गया है? उसीको …
Bhagavad Gita 17.2
Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas ।।17.2।। व्याख्या -- [अर्जुनने निष्ठाको जाननेके लिये प्रश्न किया था? पर भगवान् उसका उत्तर श्रद्धाको लेकर देते हैं क्योंकि श्रद्धाके अनुसार ही …
Bhagavad Gita 17.1
Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas ।।17.1।। व्याख्या -- ये शास्त्रविधिमुत्सृज्य ৷৷. सत्त्वमाहो रजस्तमः -- श्रीमद्भगवद्गीतामें भगवान् श्रीकृष्ण और …