कुर्वन्नेवेह कर्माणि जिजीविषेच्छतं समाः ।एवं त्वयि नान्यथेतोऽस्ति न कर्म लिप्यते नरे ॥ २ ॥ Commentary: इस संसार में सौ वर्षों तक जीने की इच्छा करो। कर्म में लिप्त न होओ। तुम्हारे लिये अन्य कोई …
Isha Upanishad, Verse 1
ईशावास्यमिदं सर्वं यत्किञ्च जगत्यां जगत् ।तेन त्यक्तेन भुञ्जीथा मा गृधः कस्य स्विद्धनम् ॥ १ ॥ Commentary: यह सारा का सारा ईश आवास, ईश्वर का आवास, स्थान है या फिर ईशावास्यम्, यह सारा भगवान् के …
Bhagavad Gita 17.28
Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas ।।17.28।। व्याख्या -- अश्रद्धया हुतं दत्तं तपस्तप्तं कृतं च यत् -- अश्रद्धापूर्वक यज्ञ? दान और तप किया जाय और कृतं च यत् …
Bhagavad Gita 17.27
Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas ।।17.27।। व्याख्या -- यज्ञे तपसि दाने च स्थितिः सदिति चोच्यते -- यज्ञ? तप और दानरूप प्रशंसनीय क्रियाओंमें जो स्थिति (निष्ठा) होती है? …
Bhagavad Gita 17.26
Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas ।।17.26।। व्याख्या -- सद्भावे -- परमत्मा हैं इस प्रकार परमात्माकी सत्ता(होनेपन) का नाम सद्भाव है। उस परमात्माके सगुणनिर्गुण? …
Bhagavad Gita 17.25
Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas ।।17.25।। व्याख्या -- तदित्यनभिसंधाय ৷৷. मोक्षकाङ्क्षिभिः -- केवल उस परमात्माकी प्रसन्नताके उद्देश्यसे? किञ्चिन्मात्र भी फलकी इच्छा न …
Bhagavad Gita 17.24
Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas ।।17.24।। व्याख्या -- तस्मादोमित्युदाहृत्य ৷৷. ब्रह्मवादिनाम् -- वेदवादीके लिये अर्थात् वेदोंको मुख्य माननेवाला जो वैदिक सम्प्रदाय …
Bhagavad Gita 17.23
Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas ।।17.23।। व्याख्या -- तत्सदिति निर्देशो ब्रह्मणस्त्रिविधः स्मृतः -- ? तत् और सत् -- यह तीन प्रकारका परमात्माका निर्देश है अर्थात् …
Bhagavad Gita 17.22
Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas ।।17.22।। व्याख्या -- असत्कृतमवज्ञातम् -- तामस दान असत्कार और अवज्ञापूर्वक दिया जाता है जैसे -- तामस मनुष्यके पास कभी दान लेनेके लिये …
Bhagavad Gita 17.21
Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas ।।17.21।। व्याख्या -- यत्तु प्रत्युपकारार्थम् -- राजस दान प्रत्युपकारके लिये दिया जाता है जैसे -- राजस पुरुष किसी विशेष अवसरपर दानकी …
Bhagavad Gita 17.20
Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas ।।17.20।। व्याख्या -- इस श्लोकमें दानके दो विभाग हैं --,(1) दातव्यमिति यद्दानं दीयते अनुपकारिणे और (2) देशे काले च पात्रे …
Bhagavad Gita 17.19
Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas ।।17.19।। व्याख्या -- मूढग्राहेणात्मनो यत्पीडया क्रियते तपः -- तामस तपमें मूढ़तापूर्वक आग्रह होनेसे अपनेआपको पीड़ा देकर तप किया जाता …
Bhagavad Gita 17.18
Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas ।।17.18।। व्याख्या -- सत्कारमानपूजार्थं तपः क्रियते -- राजस मनुष्य सत्कार? मान और पूजाके लिये ही तप किया करते हैं जैसे -- हम जहाँकहीं …
Bhagavad Gita 17.17
Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas ।।17.17।। व्याख्या -- श्रद्धया परया तप्तम् -- शरीर? वाणी और मनके द्वारा जो तप किया जाता है? वह तप ही मनुष्योंका सर्वश्रेष्ठ कर्तव्य …
Bhagavad Gita 17.16
Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas ।।17.16।। व्याख्या -- मनःप्रसादः -- मनकी प्रसन्नताको मनःप्रसाद कहते हैं। वस्तु? व्यक्ति? देश? काल? परिस्थिति? घटना आदिके संयोगसे पैदा …