Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas ।।10.3।। व्याख्या --'यो मामजमनादिं च वेत्ति लोकमहेश्वरम्'-- पीछेके श्लोकमें भगवान्के प्रकट होनेको जाननेका विषय नहीं बताया है। इस विषयको तो मनुष्य भी …
Bhagavad Gita 10.2
Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas ।।10.2।। व्याख्या --न मे विदुः सुरगणाः प्रभवं न महर्षयः--यद्यपि देवताओंके शरीर, बुद्धि, लोक, सामग्री आदि सब दिव्य हैं, तथापि वे मेरे प्रकट होनेको नहीं …
Bhagavad Gita 10.1
Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas ।।10.1।। व्याख्या--'भूयः एव'--भगवान्की विभूतियोंको तत्त्वसे जाननेपर भगवान्में भक्ति होती है, प्रेम होता है। इसलिये कृपावश होकर भगवान्ने सातवें अध्यायमें …
Bhagavad Gita, Chapter 10
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दक्षिण भारतके विजियाना ग्राममें सं० १६६४ के पौष मासमें एक सम्पन्न ब्राह्मण-परिवारमें शिवरामजीका जन्म हुआ। यही आगे चलकर श्रीतैलंगस्वामीके नामसे प्रख्यात हुए। बहुत थोड़ी अवस्थामें शिवरामजीके पिताका …
Bhagavad Gita 9.34
Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas ।।9.34।। व्याख्या --[अपने हृदयकी बात वहीं कही जाती है, जहाँ सुननेवालेमें कहनेवालेके प्रति दोषदृष्टि न हो, प्रत्युत आदरभाव हो। अर्जुन दोषदृष्टिसे रहित हैं, …
Bhagavad Gita 9.33
Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas ।।9.33।। व्याख्या--'किं पुनर्ब्राह्मणाः पुण्या भक्ता (टिप्पणी प0 528) राजर्षय स्तथा'-- जब वर्तमानमें पाप करनेवाला साङ्गोपाङ्ग दुराचारी और …
Bhagavad Gita 9.32
Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas ।।9.32।। व्याख्या--'मां हि पार्थ व्यपाश्रित्य ৷৷. यान्ति परां गतिम्'-- जिनके इस जन्ममें आचरण खराब हैं अर्थात् जो इस जन्मका पापी है, उसको भगवान्ने …
Bhagavad Gita 9.31
Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas ।।9.31।। व्याख्या --'क्षिप्रं भवति धर्मात्मा'-- वह तत्काल धर्मात्मा हो जाता है अर्थात् महान् पवित्र हो जाता है। कारण कि यह जीव स्वयं परमात्माका अंश है …
Bhagavad Gita 9.30
Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas ।।9.30।। व्याख्या --[कोई करोड़पति या अरबपति यह बात कह दे कि मेरे पास जो कोई आयेगा, उसको मैं एक लाख रुपये दूँगा, तो उसके इस वचनकी परीक्षा तब होगी, जब उससे …
Bhagavad Gita 9.29
Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas ।।9.29।। व्याख्या--'समोऽहं सर्वभूतेषु'-- मैं स्थावरजंगम आदि सम्पूर्ण प्राणियोंमें व्यापकरूपसे और कृपादृष्टिसे सम हूँ। तात्पर्य है कि मैं सबमें …
Bhagavad Gita 9.28
Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas ।।9.28।। व्याख्या--शुभाशुभफलैरेवं मोक्ष्यसे कर्मबन्धनैः--पूर्वोक्त प्रकारसे सब पदार्थ और क्रियाएँ मेरे अर्पण करनेसे अर्थात् तेरे स्वयंके मेरे अर्पित हो …
Bhagavad Gita 9.27
Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas ।।9.27।। व्याख्या--भगवान्का यह नियम है कि जो जैसे मेरी शरण लेते हैं, मैं वैसे ही उनको आश्रय देता हूँ (गीता 4। 11)। जो भक्त अपनी वस्तु मेरे अर्पण करता है, …
Bhagavad Gita 9.26
Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas ।।9.26।। व्याख्या--[भगवान्की अपरा प्रकृतिके दो कार्य हैं--पदार्थ और क्रिया। इन दोनोंके साथ अपनी एकता मानकर ही यह जीव अपनेको उनका भोक्ता और मालिक मानने लग …