Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas ।।15.11।। व्याख्या -- यतन्तो योगिनश्चैनं पश्यन्ति -- यहाँ योगिनः पद उन सांख्ययोगी साधकोंका वाचक है? जिनका एकमात्र उद्देश्य …
Bhagavad Gita 15.10
Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas ।।15.10।। व्याख्या -- उत्क्रामन्तम् -- स्थूलशरीरको छोड़ते समय जीव सूक्ष्म और कारणशरीरको साथ लेकर प्रस्थान करता है। इसी क्रियाको …
Bhagavad Gita 15.9
Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas ।।15.9।। व्याख्या -- अधिष्ठाय मनश्चायम् -- मनमें अनेक प्रकारके (अच्छेबुरे) संकल्पविकल्प होते रहते हैं। इनसे स्वयं की स्थितिमें कोई …
Bhagavad Gita 15.8
Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas ।।15.8।। व्याख्या -- वायुर्गन्धानिवाशयात् -- जिस प्रकार वायु इत्रके फोहेसे गन्ध ले जाती है किन्तु वह गन्ध स्थायीरूपसे वायुमें नहीं …
Bhagavad Gita 15.7
Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas ।।15.7।। व्याख्या -- ममैवांशो जीवलोके जीवभूतः सनातनः -- जिनके साथ जीवकी तात्त्विक अथवा स्वरूपकी एकता नहीं है? ऐसे प्रकृति और …
Bhagavad Gita 15.6
Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas ।।15.6।। व्याख्या -- [छठा श्लोक पाँचवें और सातवें श्लोकोंको जोड़नेवाला है। इन श्लोकोंमें भगवान् यह बताते हैं कि वह अविनाशी पद मेरा ही धाम है? …
Bhagavad Gita 15.5
Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas ।।15.5।। व्याख्या -- निर्मानमोहाः -- शरीरमें मैंमेरापन होनेसे ही मान? आदरसत्कारकी इच्छा होती है। शरीरसे अपना सम्बन्ध माननेके कारण ही …
Bhagavad Gita 15.4
Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas ।।15.4।। व्याख्या--'ततः पदं तत्परिमार्गितव्यम्'--भगवान्ने पूर्वश्लोकमें 'छित्त्वा' पदसे संसारसे सम्बन्ध-विच्छेद करनेकी बात कही है। इससे यह सिद्ध …
Bhagavad Gita 15.3
Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas ।।15.3।। व्याख्या -- न रूपमस्येह तथोपलभ्यते -- इसी अध्यायके पहले श्लोकमें संसारवृक्षके विषयमें कहा गया है कि लोग इसको अव्यय (अविनाशी) …
Bhagavad Gita Chapter 18 Overview
मनुष्यमात्रके उद्धारके लिये उनकी रुचि, योग्यता और श्रद्धाके अनुसार तीन साधन बताये गये हैं-कर्मयोग, ज्ञानयोग और भक्तियोग (शरणागति)। इनमेंसे किसी भी एक साधनमें मनुष्य लग जाय तो उसका उद्धार हो जाता …
Bhagavad Gita Chapter 9 Overview
सभी मनुष्य भगवत्प्राप्तिके अधिकारी हैं, चाहे वे किसी भी वर्ण, आश्रम, सम्प्रदाय, देश, वेश आदिके क्यों न हों। वे सभी भगवान्की तरफ चल सकते हैं, भगवान्का आश्रय लेकर भगवान्को प्राप्त कर सकते …
Bhagavad Gita, Chapter 15
Bhagavad Gita Chapter 5 Overview
मनुष्यको अनुकूल-प्रतिकूल परिस्थितियोंके आनेपर सुखी-दुःखी, राजी नाराज नहीं होना चाहिये; क्योंकि इन सुख-दुःख आदि द्वन्द्वोंमें फँसा हुआ मनुष्य संसारसे ऊँचा नहीं उठ सकता। स्त्री, पुत्र, परिवार, …
Bhagavad Gita Chapter 4 Overview
सम्पूर्ण कर्मोंको लीन करनेके, सम्पूर्ण कर्मोंके बन्धनसे रहित होनेके दो उपाय हैं- कर्मोंक तत्त्वको जानना और तत्त्वज्ञानको प्राप्त करना। भगवान् सृष्टिकी रचना तो करते हैं, पर उस कर्ममें और उसके फलमें …
Bhagavad Gita 15.1 – Urdhvamula Madhah
श्रीभगवानुवाच ।ऊर्ध्वमूलमधःशाखमश्वत्थं प्राहुरव्ययम् ।छन्दांसि यस्य पर्णानि यस्तं वेद स वेदवित् ॥ १५-१॥ श्रीभगवान् (श्रीकृष्ण ने) उवाच (कहा) ऊर्ध्वमूलं (ऊपर की ओर जिसका मूल है, अर्थात् क्षर और …
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