Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas ।।16.12।। व्याख्या -- आशापाशशतैर्बद्धाः -- आसुरी सम्पत्तिवाले मनुष्य आशारूपी सैकड़ों पाशोंसे बँधे रहते हैं अर्थात् उनको इतना धन हो …
Bhagavad Gita 16.11
Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas ।।16.11।। व्याख्या -- चिन्तामपरिमेयां च प्रलयान्तामुपाश्रिताः -- आसुरीसम्पदावाले मनुष्योंमें ऐसी चिन्ताएँ रहती हैं? जिनका कोई मापतौल …
Bhagavad Gita 16.10
Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas ।।16.10।। व्याख्या -- काममाश्रित्य दुष्पूरम् -- वे आसुरी प्रकृतिवाले कभी भी पूरी न होनेवाली कामनाओंका आश्रय लेते हैं। जैसे कोई मनुष्य …
Bhagavad Gita 16.9
Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas ।।16.9।। व्याख्या -- एतां दृष्टिमवष्टभ्य -- न कोई कर्तव्यअकर्तव्य है? न शौचाचारसदाचार है? न ईश्वर है? न प्रारब्ध है? न पापपुण्य है? न …
Bhagavad Gita 16.8
Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas ।।16.8।। व्याख्या -- असत्यम् -- आसुर स्वभाववाले पुरुष कहा करते हैं कि यह जगत् असत्य है अर्थात् इसमें कोई भी बात सत्य नहीं है। जितने …
Bhagavad Gita 16.7
Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas ।।16.7।। व्याख्या -- प्रवृत्तिं च निवृत्तिं च जना न विदुरासुराः -- आजकलके उच्छृङ्खल वातावरण? खानपान? शिक्षा आदिके प्रभावसे प्रायः …
Gora Kumbhar
श्रीज्ञानेश्वरकालीन संतोंमें वयस्में सबसे बड़े गोराजी कुम्हार थे। इनका जन्म तेरढोकी स्थानमें संवत् १३२४ में हुआ। इन्हें सब लोग 'चाचा' कहा करते थे। ये बड़े विरक्त, दृढ़ निश्चयी और ज्ञानी भक्त थे। इनकी …
Bhagavad Gita 16.6
Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas ।।16.6।। व्याख्या -- द्वौ भूतसर्गौ लोकेऽस्मिन्दैव आसुर एव च -- आसुरीसम्पत्तिका विस्तारपूर्वक वर्णन करनेके लिये उसका उपक्रम करते हुए …
Bhagavad Gita 16.5
Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas 16.5।।व्याख्या--'दैवी सम्पद्विमोक्षाय'--मेरेको भगवान्की तरफ ही चलना है -- यह भाव साधकमें जितना स्पष्टरूपसे आ जाता है, उतना ही वह भगवान्के सम्मुख हो जाता है। …
Bhagavad Gita 16.4
Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas ।।16.4।। व्याख्या -- दम्भः -- मान? बड़ाई? पूजा? ख्याति आदि प्राप्त करनेके लिये? अपनी वैसी स्थिति न होनेपर भी वैसी स्थिति दिखानेका नाम …
Bhagavad Gita 16.3
Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas ।।16.3।। व्याख्या--'तेजः'--महापुरुषोंका सङ्ग मिलनेपर उनके प्रभावसे प्रभावित होकर साधारण पुरुष भी दुर्गुण-दुराचारोंका त्याग करके सद्गुण-सदाचारोंमें लग जाते …
Bhagavad Gita 16.2
Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas ।।16.2।। व्याख्या--'अहिंसा'--शरीर, मन, वाणी, भाव आदिके द्वारा किसीका भी किसी प्रकारसे अनिष्ट न करनेको तथा अनिष्ट न चाहनेको 'अहिंसा' कहते हैं। वास्तवमें …
Bhagavad Gita 16.1
Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas ।।16.1।। व्याख्या--[पंद्रहवें अध्यायके उन्नीसवें श्लोकमें भगवान्ने कहा कि 'जो मुझे पुरुषोत्तम जान लेता है, वह सब प्रकारसे मेरा ही भजन करता है अर्थात् वह …
Bhagavad Gita, Chapter 16
Samarth Ramdas
श्रीसूर्याजी पन्तकी पत्नी श्रीरेणुका बाईके गर्भसे चैत्र शुक्ल नवमी संवत् १६६५ को ठीक श्रीराम जन्मके समय जो तेजोमय बालक हुआ, वही आगे जाकर समर्थ स्वामी रामदासके नामसे प्रख्यात हुआ। आठ वर्षकी …