Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas ।।8.19।। व्याख्या --'भूतग्रामः स एवायम्'--अनादिकालसे जन्म-मरणके चक्करमें पड़ा हुआ यह प्राणिसमुदाय वही है, जो कि साक्षात् मेरा अंश, मेरा स्वरूप है। मेरा …
Bhagavad Gita 8.18
Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas ।।8.18।। व्याख्या--'अव्यक्ताद्व्यक्तयः ৷৷. तत्रैवाव्यक्तसंज्ञके'--मात्र प्राणियोंके जितने शरीर हैं, उनको यहाँ 'व्यक्तयः'और चौदहवें अध्यायके चौथे …
Bhagavad Gita 8.16
Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas ।।8.16।। व्याख्या--(टिप्पणी प0 467.2) 'आब्रह्मभुवनाल्लोकाः पुनरावर्तिनोऽर्जुन'--हे अर्जुन ! ब्रह्माजीके लोकको लेकर सभी लोक पुनरावर्ती हैं, …
Bhagavad Gita 8.15
Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas ।।8.15।। व्याख्या--'मामुपेत्य पुनर्जन्म ৷৷. संसिद्धिं परमां गताः'--'मामुपेत्य' का तात्पर्य है कि भगवान्के दर्शन कर ले, भगवान्को तत्त्वसे जान ले अथवा …
Bhagavad Gita 8.14
Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas ।।8.14।। व्याख्या--[सातवें अध्यायके तीसवें श्लोकमें जो सगुण-साकार परमात्माका वर्णन हुआ था, उसीको यहाँ चौदहवें, पंद्रहवें और सोलहवें श्लोकमें विस्तारसे कहा …
Bhagavad Gita 8.13
Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas ।।8.13।। व्याख्या--'सर्वद्वाराणि संयम्य'--(अन्तसमयमें) सम्पूर्ण इन्द्रियोंके द्वारोंका संयम कर ले अर्थात् शब्द, स्पर्श, रूप, रस और गन्ध-- इन पाँचों …