Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas ।।9.26।। व्याख्या--[भगवान्की अपरा प्रकृतिके दो कार्य हैं--पदार्थ और क्रिया। इन दोनोंके साथ अपनी एकता मानकर ही यह जीव अपनेको उनका भोक्ता और मालिक मानने लग …
Bhagavad Gita 9.25
Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas ।।9.25।। व्याख्या--[पूर्वश्लोकमें भगवान्ने यह बताया कि मैं ही सम्पूर्ण यज्ञोंका भोक्ता और सम्पूर्ण संसारका मालिक हूँ, परन्तु जो मनुष्य मेरेको भोक्ता और …
Bhagavad Gita 9.24
Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas ।।9.24।। व्याख्या--[दूसरे अध्यायमें भगवान्ने कहा है कि जो भोग और ऐश्वर्यमें अत्यन्त आसक्त हैं, वे 'मेरेको केवल परमात्माकी तरफ ही चलना है' -- ऐसा निश्चय …
Bhagavad Gita 9.23
Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas ।।9.23।। व्याख्या--'येऽप्यन्यदेवता भक्ता यजन्ते श्रद्धयान्विताः' -- देवताओंके जिन भक्तोंको 'सब कुछ मैं ही हूँ' ('सदसच्चाहम्' 9। 19) -- यह …
Bhagavad Gita 9.22
Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas ।।9.22।। व्याख्या--'अनन्याश्चिन्तयन्तो मां ये जनाः पर्युपासते'--जो कुछ देखने, सुनने और समझनेमें आ रहा है, वह सब-का-सब भगवान्का स्वरूप ही है और उसमें जो कुछ …
Bhagavad Gita 9.21
Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas ।।9.21।। व्याख्या--'ते तं भुक्त्वा स्वर्गलोकं ৷৷. कामकामा लभन्ते'--स्वर्गलोक भी विशाल (विस्तृत) है वहाँकी आयु भी विशाल (लम्बी) है और वहाँकी भोगसामग्री भी …