Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas ।।18.37।। व्याख्या -- भरतर्षभ -- इस सम्बोधनको देनेमें भगवान्का भाव यह है कि भरतवंशियोंमें श्रेष्ठ अर्जुन तुम राजसतामस सुखोंमें लुब्ध? …
Bhagavad Gita 18.36
Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas ।।18.36।। व्याख्या -- भरतर्षभ -- इस सम्बोधनको देनेमें भगवान्का भाव यह है कि भरतवंशियोंमें श्रेष्ठ अर्जुन तुम राजसतामस सुखोंमें लुब्ध? …
Bhagavad Gita 18.35
Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas ।।18.35।। व्याख्या -- यया स्वप्नं भयं ৷৷. सा पार्थ तामसी -- तामसी धारणशक्तिके द्वारा मनुष्य ज्यादा निद्रा? बाहर और भीतरका भय? चिन्ता? …
Bhagavad Gita 5.11 – Kāyena Manasā
कायेन मनसा बुद्ध्या केवलैरिन्द्रियैरपि ।योगिनः कर्म कुर्वन्ति सङ्गं त्यक्त्वात्मशुद्धये ॥11॥ kāyena manasā buddhyā kevalairindriyairapiyoginaḥ karma kurvanti saṅgaṃ …
Bhagavad Gita 18.34
Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas ।।18.34।। व्याख्या -- यया तु धर्मकामार्थान्धृत्या ৷৷. सा पार्थ राजसी -- राजसी धारणशक्तिसे मनुष्य अपनी कामनापूर्तिके लिये धर्मका …
Bhagavad Gita 18.33
Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas ।।18.33।। व्याख्या -- धृत्या यया धारयते ৷৷. योगेनाव्यभिचारिण्या -- सांसारिक लाभहानि? जयपराजय? सुखदुःख? आदरनिरादर? सिद्धिअसिद्धिमें सम …