Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas ।।9.21।। व्याख्या--'ते तं भुक्त्वा स्वर्गलोकं ৷৷. कामकामा लभन्ते'--स्वर्गलोक भी विशाल (विस्तृत) है वहाँकी आयु भी विशाल (लम्बी) है और वहाँकी भोगसामग्री भी …
Bhagavad Gita 9.20
Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas ।।9.20।। व्याख्या--'त्रैविद्याः मां सोमपाः ৷৷. दिव्यान्दिवि देवभागान्'--संसारके मनुष्य प्रायः यहाँके भोगोंमें ही लगे रहते हैं उनमें जो भी विशेष बुद्धिमान् …
Bhagavad Gita 9.19
Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas ।।9.19।। व्याख्या --'तपाम्यहमहं वर्षं निगृह्णाम्युत्सृजामि च'--'पृथ्वीपर जो कुछ अशुद्ध, गंदी चीजें हैं, जिनसे रोग पैदा होते हैं, उनका शोषण करके प्राणियोंको …
Bhagavad Gita 9.18
Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas ।।9.18।। व्याख्या--[अपनी रुचि, श्रद्धा-विश्वासके अनुसार किसीको भी साक्षात् परमात्माका स्वरूप मानकर उसके साथ सम्बन्ध जोड़ा जाय तो वास्तवमें यह सम्बन्ध सत्के …
Bhagavad Gita 9.17
Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas ।।9.17।। व्याख्या--[अपनी रुचि, श्रद्धा-विश्वासके अनुसार किसीको भी साक्षात् परमात्माका स्वरूप मानकर उसके साथ सम्बन्ध जोड़ा जाय तो वास्तवमें यह सम्बन्ध सत्के …
Bhagavad Gita 9.16
Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas ।।9.16।। व्याख्या--[अपनी रुचि, श्रद्धा-विश्वासके अनुसार किसीको भी साक्षात् परमात्माका स्वरूप मानकर उसके साथ सम्बन्ध जोड़ा जाय तो वास्तवमें यह सम्बन्ध सत्के …