Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas ।।9.33।। व्याख्या--'किं पुनर्ब्राह्मणाः पुण्या भक्ता (टिप्पणी प0 528) राजर्षय स्तथा'-- जब वर्तमानमें पाप करनेवाला साङ्गोपाङ्ग दुराचारी और …
Bhagavad Gita 9.32
Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas ।।9.32।। व्याख्या--'मां हि पार्थ व्यपाश्रित्य ৷৷. यान्ति परां गतिम्'-- जिनके इस जन्ममें आचरण खराब हैं अर्थात् जो इस जन्मका पापी है, उसको भगवान्ने …
Bhagavad Gita 9.31
Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas ।।9.31।। व्याख्या --'क्षिप्रं भवति धर्मात्मा'-- वह तत्काल धर्मात्मा हो जाता है अर्थात् महान् पवित्र हो जाता है। कारण कि यह जीव स्वयं परमात्माका अंश है …
Bhagavad Gita 9.30
Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas ।।9.30।। व्याख्या --[कोई करोड़पति या अरबपति यह बात कह दे कि मेरे पास जो कोई आयेगा, उसको मैं एक लाख रुपये दूँगा, तो उसके इस वचनकी परीक्षा तब होगी, जब उससे …
Bhagavad Gita 9.29
Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas ।।9.29।। व्याख्या--'समोऽहं सर्वभूतेषु'-- मैं स्थावरजंगम आदि सम्पूर्ण प्राणियोंमें व्यापकरूपसे और कृपादृष्टिसे सम हूँ। तात्पर्य है कि मैं सबमें …
Bhagavad Gita 9.28
Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas ।।9.28।। व्याख्या--शुभाशुभफलैरेवं मोक्ष्यसे कर्मबन्धनैः--पूर्वोक्त प्रकारसे सब पदार्थ और क्रियाएँ मेरे अर्पण करनेसे अर्थात् तेरे स्वयंके मेरे अर्पित हो …