Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas ।।12.6।। व्याख्या--[ग्यारहवें अध्यायके पचपनवें श्लोकमें भगवान्ने अनन्य भक्तके लक्षणोंमें तीन विध्यात्मक '(मत्कर्मकृत्, …
Bhagavad Gita 12.5
Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas ।।12.5।। व्याख्या--'क्लेशोऽधिकतरस्तेषामव्यक्तासक्तचेतसाम्'--अव्यक्तमें आसक्त चित्तवाले-- इस विशेषणसे यहाँ उन साधकोंकी बात कही गयी है, जो निर्गुण-उपासनाको …
Bhgavad Gita 12.4
Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas ।।12.4।। व्याख्या --'तु'--यहाँ 'तु' पद साकार-उपासकोंसे निराकार-उपासकोंकी भिन्नता दिखानेके लिये आया है। 'संनियम्येन्द्रियग्रामम्' …
Bhagavad Gita 13.3
Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas ।।13.3।। व्याख्या -- क्षेत्रज्ञं चापि मां विद्धि सर्वक्षेत्रेषु भारत -- सम्पूर्ण क्षेत्रों(शरीरों)में मैं हूँ -- ऐसा जो अहंभाव है? …
Bhagavad Gita 12.3
Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas ।।12.3।। व्याख्या--'तु'--यहाँ 'तु' पद साकार-उपासकोंसे निराकार-उपासकोंकी भिन्नता दिखानेके लिये आया …
Bhagavad Gita 12.2
Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas ।।12.2।। व्याख्या--[भगवान्ने ठीक यही निर्णय अर्जुनके बिना पूछे ही छठे अध्यायके सैंतालीसवें श्लोकमें दे दिया था। परन्तु उस विषयमें अपना प्रश्न न होनेके कारण …