Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas ।।15.8।। व्याख्या -- वायुर्गन्धानिवाशयात् -- जिस प्रकार वायु इत्रके फोहेसे गन्ध ले जाती है किन्तु वह गन्ध स्थायीरूपसे वायुमें नहीं …
Bhagavad Gita 2.72 – Eṣhā Brāhmī
एषा ब्राह्मी स्थितिः पार्थ नैनां प्राप्य विमुह्यति ।स्थित्वास्यामन्तकालेऽपि ब्रह्मनिर्वाणमृच्छति ॥72॥ eṣā brāhmī sthitiḥ pārtha naināṃ prāpya vimuhyatisthitvāsyāmantakāle’pi …
Bhagavad Gita 15.7
Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas ।।15.7।। व्याख्या -- ममैवांशो जीवलोके जीवभूतः सनातनः -- जिनके साथ जीवकी तात्त्विक अथवा स्वरूपकी एकता नहीं है? ऐसे प्रकृति और …
Bhagavad Gita 15.6
Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas ।।15.6।। व्याख्या -- [छठा श्लोक पाँचवें और सातवें श्लोकोंको जोड़नेवाला है। इन श्लोकोंमें भगवान् यह बताते हैं कि वह अविनाशी पद मेरा ही धाम है? …
Bhagavad Gita 15.5
Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas ।।15.5।। व्याख्या -- निर्मानमोहाः -- शरीरमें मैंमेरापन होनेसे ही मान? आदरसत्कारकी इच्छा होती है। शरीरसे अपना सम्बन्ध माननेके कारण ही …
Bhagavad Gita 15.4
Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas ।।15.4।। व्याख्या--'ततः पदं तत्परिमार्गितव्यम्'--भगवान्ने पूर्वश्लोकमें 'छित्त्वा' पदसे संसारसे सम्बन्ध-विच्छेद करनेकी बात कही है। इससे यह सिद्ध …