Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas ।।16.15।। व्याख्या -- आसुर स्वभाववाले व्यक्ति अभिमानके परायण होकर इस प्रकारके मनोरथ करते हैं, -- आढ्योऽभिजनवानस्मि -- कितना धन हमारे …
Bhagavad Gita 3.10 – Saha-yajñāḥ
सहयज्ञाः प्रजाः सृष्ट्वा पुरोवाच प्रजापतिः ।अनेन प्रसविष्यध्वमेष वोऽस्त्विष्टकामधुक् ॥10॥ sahayajñāḥ prajāḥ sṛṣṭvā purovāca prajāpatiḥanena prasaviṣyadhvameṣa vo’stviṣṭakāmadhuk saha = …
Bhagavad Gita 16.14
Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas ।।16.14।। व्याख्या -- आसुरीसम्पदावाले व्यक्ति क्रोधके परायण होकर इस प्रकारके मनोरथ करते हैं -- असौ मया हतः शत्रुः -- वह हमारे विपरीत …
Bhagavad Gita 3.36 – Atha Kena Prayukto
अर्जुन उवाच ।अथ केन प्रयुक्तोऽयं पापं चरति पूरुषः ।अनिच्छन्नपि वार्ष्णेय बलादिव नियोजितः ॥36॥ arjuna uvācaatha kena prayukto’yaṃ pāpaṃ carati pūruṣaḥanicchannapi vārṣṇeya balādiva …
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Bhagavad Gita 16.13
Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas ।।16.13।। व्याख्या -- इदमद्य मया लब्धमिमं प्राप्स्ये मनोरथम् -- आसुरी प्रकृतिवाले व्यक्ति लोभके परायण होकर मनोरथ करते रहते हैं कि …
Bhagavad Gita 16.12
Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas ।।16.12।। व्याख्या -- आशापाशशतैर्बद्धाः -- आसुरी सम्पत्तिवाले मनुष्य आशारूपी सैकड़ों पाशोंसे बँधे रहते हैं अर्थात् उनको इतना धन हो …