Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas ।।17.16।। व्याख्या -- मनःप्रसादः -- मनकी प्रसन्नताको मनःप्रसाद कहते हैं। वस्तु? व्यक्ति? देश? काल? परिस्थिति? घटना आदिके संयोगसे पैदा …
Bhagavad Gita 17.15
Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas ।।17.15।। व्याख्या -- अनुद्वेगकरं वाक्यम् -- जो वाक्य वर्तमानमें और भविष्यमें कभी किसीमें भी उद्वेग? विक्षेप और हलचल पैदा करनेवाला न …
Bhagavad Gita 4.13 – Cāturvarṇyaṃ Mayā
चातुर्वर्ण्यं मया सृष्टं गुणकर्मविभागशः ।तस्य कर्तारमपि मां विद्ध्यकर्तारमव्ययम् ॥13॥ cāturvarṇyaṃ mayā sṛṣṭaṃ guṇakarmavibhāgaśaḥtasya kartāramapi māṃ …
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Bhagavad Gita 17.14
Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas ।।17.14।। व्याख्या -- देवद्विजगुरुप्राज्ञपूजनम् -- यहाँ देव शब्द मुख्यरूपसे विष्णु? शङ्कर? गणेश? शक्ति और सूर्य -- इन पाँच …
Bhagavad Gita 17.13
Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas ।।17.13।। व्याख्या -- विधिहीनम् -- अलगअलग यज्ञोंकी अलगअलग विधियाँ होती हैं और उसके अनुसार यज्ञकुण्ड? स्रुवा आदि पात्र? बैठनेकी दिशा? …
Bhagavad Gita 17.12
Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas ।।17.12।। व्याख्या -- अभिसन्धाय तु फलम् -- फल अर्थात् इष्टकी प्राप्ति और अनिष्टकी निवृत्तिकी कामना रखकर जो यज्ञ किया जाता है? वह राजस …