Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas ।।18.8।। व्याख्या -- दुःखमित्येव यत्कर्म -- यज्ञ? दान आदि शास्त्रीय नियत कर्मोंको करनेमें केवल दुःख ही भोगना पड़ता है? और उनमें है ही …
Bhagavad Gita 18.7
Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas ।।18.7।। व्याख्या -- [तीन तरहके त्यागका वर्णन भगवान् इसलिये करते हैं कि अर्जुन कर्मोंका स्वरूपसे त्याग करना चाहते थे -- श्रेयो भोक्तुं …
Bhagavad Gita 18.6
Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas ।।18.6।। व्याख्या -- एतान्यपि तु कर्माणि ৷৷. निश्चितं मतमुत्तमम् -- यहाँ एतानि पदसे पूर्वश्लोकमें कहे यज्ञ? दान और तपरूप …
Bhagavad Gita 18.5
Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas ।।18.5।। व्याख्या -- यज्ञदानतपःकर्म न त्याज्यं कार्यमेव तत् -- यहाँ भगवान्ने दूसरोंके मत (18। 3) को ठीक बताया है। भगवान् कठोर …
Bhagavad Gita 18.4
Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas ।।18.4।। व्याख्या -- निश्चयं श्रृणु मे तत्र त्यागे भरतसत्तम -- हे भरतवंशियोंमें श्रेष्ठ अर्जुन अब मैं संन्यास और त्याग -- दोनोंमेंसे …
Bhagavad Gita 5.4 – Sāṅkhyayogau Pṛthagbālāḥ
साङ्ख्ययोगौ पृथग्बालाः प्रवदन्ति न पण्डिताः ।एकमप्यास्थितः सम्यगुभयोर्विन्दते फलम् ॥4॥ sāṅkhyayogau pṛthagbālāḥ pravadanti na paṇḍitāḥekamapyāsthitaḥ samyagubhayorvindate phalam sāṅkhya = …
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