Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas ।।6.12।। व्याख्या--[पूर्वश्लोकमें बिछाये जानेवाले आसनकी विधि बतानेके बाद अब भगवान् बारहवें और तेरहवें श्लोकमें बैठनेवाले आसनकी विधि बताते हैं।] 'तत्र …
Bhagavad Gita 6.11
Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas ।।6.11।। व्याख्या--'शुचौ देशे'--भूमिकी शुद्धि दो तरहकी होती है--(1) स्वाभाविक शुद्ध स्थान; जैसे--गङ्गा आदिका किनारा; जंगल; तुलसी, आँवला, पीपल आदि पवित्र …
Bhagavad Gita 6.10
Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas ।।6.10।। व्याख्या--[पाँचवें अध्यायके सत्ताईसवें-अट्ठाईसवें श्लोकोंमें जिस ध्यानयोगका संक्षेपसे वर्णन किया था, अब यहाँ उसीका विस्तारसे वर्णन कर रहे …
Bhagavad Gita 6.9
Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas ।।6.9।। व्याख्या--[आठवें श्लोकमें पदार्थोंमें समता बतायी, अब इस श्लोकमें व्यक्तियोंमें समता बताते हैं। व्यक्तियोंमें समता बतानेका तात्पर्य है कि वस्तु तो …
Bhagavad Gita 6.8
Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas ।।6.8।। व्याख्या--'ज्ञानविज्ञानतृप्तात्मा'--यहाँ कर्मयोगका प्रकरण है; अतः यहाँ कर्म करनेकी जानकारीका नाम 'ज्ञान' है और कर्मोंकी सिद्धि-असिद्धिमें सम रहनेका …
Bhagavad Gita 6.7
Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas ।।6.7।। व्याख्या--[छठे श्लोकमें'अनात्मनः' पद और यहाँ 'जितात्मनः' पद आया है। इसका तात्पर्य है कि जो 'अनात्मा' होता है, वह शरीरादि प्राकृत …