Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas ।।6.20।। व्याख्या--'यत्रोपरमते चित्तं ৷৷. पश्यन्नात्मनि तुष्यति'--ध्यानयोगमें पहले 'मनको केवल स्वरूपमें ही लगाना है' यह धारणा होती है। ऐसी धारणा होनेके बाद …
Bhagavad Gita 6.19
Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas ।।6.19।। व्याख्या--'यथा दीपो निवातस्थो ৷৷. युञ्जतो योगमात्मनः'--जैसे सर्वथा स्पन्दनरहित वायुके स्थानमें रखे हुए दीपककी लौ थोड़ी भी हिलती-डुलती नहीं है ,ऐसे …
Bhagavad Gita 6.17
Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas ।।6.17।। व्याख्या-- युक्ताहारविहारस्य--भोजन सत्य और न्यायपूर्वक कमाये हुए धनका हो, सात्त्विक हो, अपवित्र न हो। भोजन स्वादबुद्धि और पुष्टिबुद्धिसे न …
Bhagavad Gita 6.15
Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas ।।6.15।। व्याख्या--'योगी नियतमानसः' जिसका मनपर अधिकार है, वह 'नियतमानसः' है। साधक 'नियतमानस' तभी हो सकता है, जब उसके उद्देश्यमें केवल …
Bhagavad Gita 6.14
Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas ।।6.14।। व्याख्या--'प्रशान्तात्मा'--जिसका अन्तःकरण राग-द्वेषसे रहित है, वह 'प्रशान्तात्मा' है। जिसका सांसारिक विशेषता प्राप्त करनेका, …
Bhagavad Gita 6.13
Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas ।।6.13।। व्याख्या--'समं कायशिरोग्रीवं धारयन्नचलम्'--यद्यपि 'काय' नाम शरीरमात्रका है, तथापि यहाँ (आसनपर बैठनेके बाद) कमरसे लेकर गलेतकके भागको 'काय' नामसे …