Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas ।।6.26।। व्याख्या--'यतो यतो निश्चरति ৷৷. आत्मन्येव वशं नयेत्'--साधकने जो ध्येय बनाया है, उसमें यह मन टिकता नहीं, ठहरता नहीं। अतः इसको अस्थिर कहा गया है। यह …
Bhagavad Gita 6.25
Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas ।।6.25।। व्याख्या--'बुद्ध्या धृतिगृहीतया'--साधन करते-करते प्रायः साधकोंको उकताहट होती है, निराशा होती है कि ध्यान लगाते, विचार करते इतने दिन हो गये पर …
Bhagavad Gita 6.24
Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas ।।6.24।। व्याख्या--[जो स्थिति कर्मफलका त्याग करनेवाले कर्मयोगीकी होती है (6। 1 9), वही स्थिति सगुणसाकार भगवान्का ध्यान करनेवालेकी (6। 14 15) तथा अपने …
Bhagavad Gita 6.23
Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas ।।6.23।। व्याख्या--तं विद्याद्दुःखसंयोगवियोगं योगसंज्ञितम्--जिसके साथ हमारा सम्बन्ध है नहीं, हुआ नहीं, होगा नहीं और होना सम्भव ही नहीं, ऐसे दुःखरूप …
Bhagavad Gita 6.22
Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas ।।6.22।। व्याख्या--'यं लब्ध्वा चापरं लाभं मन्यते नाधिकं ततः'-- मनुष्यको जो सुख प्राप्त है, उससे अधिक सुख दीखता है तो वह उसके लोभमें आकर विचलित हो जाता …
Bhagavad Gita 6.21
Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas ।।6.21।। व्याख्या--'सुखमात्यन्तिकं यत्'--ध्यानयोगी अपने द्वारा अपने-आपमें जिस सुखका अनुभव करता है, प्राकृत संसारमें उस सुखसे बढ़कर दूसरा कोई सुख हो ही नहीं …