Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas ।।6.38।। व्याख्या--[अर्जुनने पूर्वोक्त श्लोकमें कां गतिं कृष्ण गच्छति कहकर जो बात पूछी थी, उसीका इस श्लोकमें खुलासा पूछते हैं।] 'अप्रतिष्ठो …
Bhagavad Gita 6.37
Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas ।।6.37।। व्याख्या--'अयतिः श्रद्धयोपेतो योगाच्चलितमानसः'--जिसकी साधनमें अर्थात् जप, ध्यान, सत्सङ्ग, स्वाध्याय आदिमें रुचि है, श्रद्धा है और उनको करता भी है, …
Bhagavad Gita 6.36
Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas ।।6.36।। व्याख्या--असंयतात्मना योगो दुष्प्रापः--मेरे मतमें तो जिसका मन वशमें नहीं है उसके द्वारा योग सिद्ध होना कठिन है। कारण कि योगकी सिद्धिमें मनका वशमें …
Bhagavad Gita 6.35
Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas ।।6.35।। व्याख्या--'असंशयं महाबाहो मनो दुर्निग्रहं चलम्'--यहाँ 'महाबाहो' सम्बोधनका तात्पर्य शूरवीरता बतानेमें है अर्थात् अभ्यास करते हुए कभी …
Bhagavad Gita 6.34
Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas ।।6.34।। व्याख्या--'चञ्चलं हि मनः कृष्ण प्रमाथि बलवद्दृढम्'--यहाँ भगवान्को 'कृष्ण' सम्बोधन देकर अर्जुन मानो यह कहे रहे हैं कि हे नाथ! आप ही कृपा करके इस …
Bhagavad Gita 6.32
Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas ।।6.32।। व्याख्या--[जिसको इसी अध्यायके सत्ताईसवें श्लोकमें 'ब्रह्मभूत' कहा है और जिसको अट्ठाईसवें श्लोकमें 'अत्यन्त सुख' की प्राप्ति होनेकी बात कही है, उस …