Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas ।।7.8।। व्याख्या--[जैसे साधारण दृष्टिसे लोगोंने रुपयोंको ही सर्वश्रेष्ठ मान रखा है तो रुपये पैदा करने और उनका संग्रह करनेमें लोभी आदमीकी स्वाभाविक रुचि हो …
Bhagavad Gita 7.7
Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas ।।7.7।। व्याख्या--'मत्तः परतरं नान्यत् किञ्चिदस्ति धनञ्जय'--हे अर्जुन ! मेरे सिवाय दूसरा कोई कारण नहीं है, मैं ही सब संसारका महाकारण हूँ। जैसे वायु आकाशसे …
Bhagavad Gita 7.6
Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas ।।7.6।। व्याख्या--'एतद्योनीनि भूतानि' (टिप्पणी प0 401.1) जितने भी देवता, मनुष्य, पशु, पक्षी आदि जङ्गम और वृक्ष, लता, घास आदि स्थावर प्राणी हैं, …
Bhagavad Gita 7.5
Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas ।।7.5।। व्याख्या--'भूमिरापोऽनलो वायुः ৷৷. विद्धि मे पराम्'--परमात्मा सबके कारण हैं। वे प्रकृतिको लेकर सृष्टिकी रचना करते हैं (टिप्पणी …
Bhagavad Gita 7.4
Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas ।।7.4।। व्याख्या--'भूमिरापोऽनलो वायुः ৷৷. विद्धि मे पराम्'--परमात्मा सबके कारण हैं। वे प्रकृतिको लेकर सृष्टिकी रचना करते हैं(टिप्पणी प0 397.1)। जिस …
Bhagavad Gita 7.3
Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas ।।7.3।। व्याख्या--'मनुष्याणां सहस्रेषु कश्चिद्यतति सिद्धये'--(टिप्पणी प0 395.1) 'हजारों मनुष्योंमें' कोई एक ही मेरी प्राप्तिके लिये यत्न करता है। …