Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas ।।7.14।। व्याख्या--'दैवी ह्येषा गुणमयी (टिप्पणी प0 411) मम माया दुरत्यया'--सत्त्व, रज और तम--इन तीन गुणोंवाली दैवी (देव अर्थात् परमात्माकी) माया बड़ी …
Bhagavad Gita 7.13
Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas ।।7.13।। व्याख्या--'त्रिभिर्गुणमयैर्भावैरेभिः ৷৷. परमव्ययम्'--सत्त्व रज और तम--तीनों गुणोंकी वृत्तियाँ उत्पन्न और लीन होती रहती हैं। उनके साथ तादात्म्य …
Bhagavad Gita 7.12
Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas ।।7.12।। व्याख्या--'ये चैव सात्त्विका भावा राजसास्तामसाश्च ये'--ये जो सात्त्विक, राजस और तामस भाव (गुण, पदार्थ क्रिया) हैं, वे भी मेरेसे ही उत्पन्न होते …
Bhagavad Gita 7.11
Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas ।।7.11।। व्याख्या--'बलं बलवतां चाहं कामरागविवर्जितम्'--कठिन-से-कठिन काम करते हुए भी अपने भीतर एक कामना-आसक्तिरहित शुद्ध, निर्मल उत्साह रहता है। काम पूरा …
Bhagavad Gita 7.10
Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas ।।7.10।। व्याख्या--'बीजं मां सर्वभूतानां विद्धि (टिप्पणी प0 405) पार्थ सनातनम्'--हे पार्थ ! सम्पूर्ण प्राणियोंका सनातन (अविनाशी) बीज मैं हूँ …
Bhagavad Gita 7.9
Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas ।।7.9।। व्याख्या--'पुण्यो गन्धः पृथिव्याम्'--पृथ्वी गन्ध-तन्मात्रासे उत्पन्न होती है, गन्ध-तन्मात्रारूपसे रहती है और गन्ध-तन्मात्रामें ही लीन होती है। …