नरसी ब्राह्मणी नामक स्थानमें कार्तिक शुक्ल ११ संवत् १३२७ को नामदेवजीका जन्म हुआ। इनके पिताका नाम दामा शेट और माताका नाम गोणाई था। परम्परासे यह कुल दर्जीका काम करता था और श्रीविठ्ठलका भक्त था।
नामदेवजीने जैसे ही अक्षर लिखना सीखा, वे केवल ‘विठ्ठल’ नाम ही बार-बार लिखा करते थे। उनका भगवत्प्रेम इतना सच्चा था कि भगवान्की मूर्तिके सामने अड़कर बैठ जाते- ‘तुम दूध पियो तो मैं पिऊँगा।’ उस आठ वर्षके बालकके हठके सामने भगवान्को प्रकट होकर दूध पीना पड़ता था।
नौ वर्षकी अवस्थामें श्रीनामदेवजीका विवाह हो गया। किंतु इन्होंने गृहस्थीकी ओर ध्यान ही नहीं दिया। घर छोड़कर पण्ढरपुर चले गये और वहीं बस गये। इनकी स्त्री भी वहीं आ गयीं। नामदेवजीके चार पुत्र और कन्याएँ हुई। इनका परिवार खूब बढ़ गया। किंतु घरमें इनकी आसक्ति कभी नहीं हुई।
श्रीज्ञानेश्वर महाराज तीर्थयात्राके समय नामदेवजीसे मिले और अपने साथ चलनेका आग्रह किया। नामदेवजीने कहा-‘मेरे स्वामी तो श्रीविठ्ठल हैं। वे आज्ञा दें, तभी मैं जा सकता हूँ।’ कहते हैं कि स्वयं श्रीपाण्डुरंगने इन्हें ज्ञानेश्वरजीके साथ जानेकी आज्ञा दी।
तीर्थयात्राके समय राजपूतानेके मरुस्थलमें पहुँचनेपर दोनोंको प्यास लगी। बड़ी कठिनाईसे एक कुआँ मिला, पर उसमें जल नहीं था। ज्ञानेश्वरजी योगसिद्धिसे कुएँके तलमें प्रवेशकर जल पी आये। उन्होंने नामदेवजीसे पूछा- ‘तुम्हारे लिये भी इसी प्रकार जल ला दूँ ?’ नामदेवजीने कहा- ‘मैं दूसरेकी सिद्धिसे मिला जल कब पीने चला हूँ। मुझे जल पिलाना होगा तो विठ्ठल प्रभु पिला देंगे।’ उसी समय कुआँ जलसे ऊपरतक भर गया। तब नामदेवजीने जल पिया।
अस्सी वर्षकी अवस्थामें सं० १४०७ वि० में श्रीविठ्ठल मन्दिरके महाद्वारकी सीढ़ियोंपर नामदेवजीने देहत्याग किया। उनके मराठी और हिंदी पदोंका महाराष्ट्र, पंजाब तथा सभी भक्त-समुदायमें बड़ा सम्मान है। उनके पदोंमें भगवद्भक्तिका भाव कूट-कूटकर भरा है। साथ ही उनमें ज्ञान तथा सदाचारकी उच्च शिक्षा है।