Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas ।।18.29।। व्याख्या -- [इसी अध्यायके अठारहवें श्लोकमें कर्मसंग्रहके तीन हेतु बताये गये हैं -- करण? कर्म और कर्ता। इनमेंसे कर्म करनेके जो …
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Bhagavad Gita 18.28
Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas ।।18.28।। व्याख्या -- अयुक्तः -- तमोगुण मनुष्यको मूढ़ बना देता है (गीता 14। 8)। इस कारण किस समयमें कौनसा काम करना चाहिये किस तरह …
Bhagavad Gita 18.27
Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas ।।18.27।। व्याख्या -- रागी -- रागका स्वरूप रजोगुण होनेके कारण भगवान्ने राजस कर्ताके लक्षणोंमें,सबसे पहले रागी पद दिया है। रागका अर्थ …
Bhagavad Gita 18.26
Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas ।।18.26।। व्याख्या -- मुक्तसङ्गः -- जैसे सांख्ययोगीका कर्मोंके साथ राग नहीं होता? ऐसे सात्त्विक कर्ता भी रागरहित होता है।कामना? …
Bhagavad Gita 18.25
Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas ।।18.25।। व्याख्या -- अनुबन्धम् -- जिसको फलकी कामना होती है? वह मनुष्य तो फलप्राप्तिके लिये विचारपूर्वक कर्म करता है? परन्तु तामस …
Bhagavad Gita 5.27 and 5.28
स्पर्शान्कृत्वा बहिर्बाह्यांश्चक्षुश्चैवान्तरे भ्रुवोः ।प्राणापानौ समौ कृत्वा नासाभ्यन्तरचारिणौ ॥27॥यतेन्द्रियमनोबुद्धिर्मुनिर्मोक्षपरायणः ।विगतेच्छाभयक्रोधो यः सदा मुक्त एव सः ॥28॥ sparśānkṛtvā …
Bhagavad Gita 5.24 – Yo’ntaḥsukho’ntarārāma
योऽन्तःसुखोऽन्तरारामस्तथान्तर्ज्योतिरेव यः ।स योगी ब्रह्मनिर्वाणं ब्रह्मभूतोऽधिगच्छति ॥24॥ yo’ntaḥsukho’ntarārāmastathāntarjyotireva yaḥsa yogī brahmanirvāṇaṃ …
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Bhagavad Gita 5.12 – Yuktaḥ Karmaphalaṃ
युक्तः कर्मफलं त्यक्त्वा शान्तिमाप्नोति नैष्ठिकीम् ।अयुक्तः कामकारेण फले सक्तो निबध्यते ॥12॥ yuktaḥ karmaphalaṃ tyaktvā śāntimāpnoti naiṣṭhikīmayuktaḥ kāmakāreṇa phale sakto …
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Bhagavad Gita 18.24
Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas ।।18.24।। व्याख्या -- यत्तु (टिप्पणी प0 906) कामेप्सुना कर्म -- हम कर्म करेंगे तो हमें पदार्थ मिलेंगे? सुखआराम मिलेगा? भोग …
Bhagavad Gita 5.5 – Yatsāṅkhyaiḥ Prāpyate
यत्साङ्ख्यैः प्राप्यते स्थानं तद्योगैरपि गम्यते ।एकं साङ्ख्यं च योगं च यः पश्यति स पश्यति ॥5॥ yatsāṅkhyaiḥ prāpyate sthānaṃ tadyogairapi gamyateekaṃ sāṅkhyaṃ ca yogaṃ ca yaḥ paśyati sa …
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Bhagavad Gita 5.3 – Jñeyaḥ Sa
ज्ञेयः स नित्यसंन्यासी यो न द्वेष्टि न काङ्क्षति ।निर्द्वन्द्वो हि महाबाहो सुखं बन्धात्प्रमुच्यते ॥3॥ jñeyaḥ sa nityasaṃnyāsī yo na dveṣṭi na kāṅkṣatinirdvandvo hi mahābāho sukhaṃ …
Bhagavad Gita 18.23
Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas ।।18.23।। व्याख्या -- नियतं सङ्गरहितम् ৷৷. सात्त्विकमुच्यते -- जिस व्यक्तिके लिये वर्ण और आश्रमके अनुसार जिस परिस्थितिमें और जिस समय …
Bhagavad Gita 18.22
Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas ।।18.22।। व्याख्या -- यत्तु (टिप्पणी प0 904.2) कृत्स्नवदेकस्मिन्कार्ये सक्तम् -- तामस मनुष्य एक ही शरीरमें सम्पूर्णकी …
Bhagavad Gita 18.21
Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas ।।18.21।। व्याख्या -- पृथक्त्वेन तु (टिप्पणी प0 904.1) यज्ज्ञानं नानाभावान् पृथग्विधान् -- राजस ज्ञानमें राग की मुख्यता होती है …
Bhagavad Gita 18.20
Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas ।।18.20।। व्याख्या -- सर्वभूतेषु येनैकं ৷৷. अविभक्तं विभक्तेषु -- व्यक्ति? वस्तु आदिमें जो है पन दीखता है? वह उन व्यक्ति? वस्तु आदिका …