Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas ।।8.3।। व्याख्या--'अक्षरं ब्रह्म परमम्'--परम अक्षरका नाम ब्रह्म है। यद्यपि गीतामें ब्रह्म शब्द प्रणव वेद प्रकृति आदिका वाचक भी आया है तथापि यहाँ ब्रह्म …
Main Content
Bhagavad Gita 8.2
Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas ।।8.2।। व्याख्या--'पुरुषोत्तम किं तद्ब्रह्म'--हे पुरुषोत्तम वह ब्रह्म क्या है अर्थात् ब्रह्म शब्दसे क्या समझना चाहिये 'किमध्यात्मम्'--अध्यात्म शब्दसे …
Bhagavad Gita 8.1
Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas ।।8.1।। व्याख्या--'पुरुषोत्तम किं तद्ब्रह्म'-- हे पुरुषोत्तम वह ब्रह्म क्या है अर्थात् ब्रह्म शब्दसे क्या समझना …
Bhagavad Gita, Chapter 8
The Magic of Thinking Big Summary
The Magic of Thinking Big is a self-help book written by David J. Schwartz and published in 1959. The book argues that anyone can achieve their goals if they think big and believe in themselves. …
Bhagavad Gita 7.30
Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas ।।7.30।। व्याख्या--'साधिभूताधिदैवं मां साधियज्ञं च ये विदुः'--[पूर्वश्लोकमें निर्गुणनिराकारको जाननेका वर्णन करके अब सगुणसाकारको जाननेकी बात कहते हैं।]यहाँ …
Bhagavad Gita 7.29
Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas ।।7.29।। व्याख्या--'जरामरणमोक्षाय मामाश्रित्य यतन्ति ये'--यहाँ जरा (वृद्धावस्था) और मरणसे मुक्ति पानेका तात्पर्य यह नहीं है कि ब्रह्म अध्यात्म और कर्मका …
Bhagavad Gita 7.28
Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas ।।7.28।। व्याख्या--'येषां त्वन्तगतं पापं जनानां पुण्यकर्मणाम्' द्वन्द्वमोहसे'--मोहित मनुष्य तो भजन नहीं करते और जो द्वन्द्वमोहसे मोहित नहीं हैं …
Bhagavad Gita 7.27
Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas ।।7.27।। व्याख्या--'इच्छाद्वेषसमुत्थेन ৷৷. सर्गे यान्ति परंतप'--इच्छा और द्वेषसे द्वन्द्वमोह पैदा होता है, जिससे मोहित होकर प्राणी भगवान्से बिलकुल विमुख हो …
Bhagavad Gita 7.26
Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas ।।7.26।। व्याख्या--'वेदाहं समतीतानि ৷৷. मां तु वेद न कश्चन'--यहाँ भगवान्ने प्राणियोंके लिये तो भूत, वर्तमान और भविष्यकालके तीन विशेषण दिये हैं; परन्तु अपने …
Bhagavad Gita 7.25
Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas ।।7.25।। व्याख्या--'मूढोऽयं नाभिजानाति लोको मामजमव्ययम्--मैं अज और अविनाशी हूँ अर्थात् जन्ममरणसे रहित हूँ। ऐसा होनेपर भी मैं प्रकट और अन्तर्धान होनेकी लीला …
Bhagavad Gita 7.24
Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas ।।7.24।। व्याख्या--अव्यक्तं व्यक्तिमापन्नं ৷৷. ममाव्ययमनुत्तमम्--जो मनुष्य निर्बुद्धि हैं और जिनकी मेरेमें श्रद्धा-भक्ति नहीं है, वे अल्पमेधाके कारण …
Bhagavad Gita 7.23
Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas ।।7.23।। व्याख्या--'अन्तवत्तु फलं तेषां तद्भवत्यल्पमेधसाम्'--देवताओंकी उपासना करनेवाले अल्पबुद्धि-युक्त मनुष्योंको अन्तवाला अर्थात् सीमित और नाशवान् फल …
Bhagavad Gita 7.22
Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas ।।7.22।। व्याख्या--स तया श्रद्धया युक्तः ৷৷. मयैव विहितान्हि तान् मेरे द्वारा दृढ़ की हुई श्रद्धासे सम्पन्न हुआ वह मनुष्य उस देवताकी आराधनाकी चेष्टा …
Bhagavad Gita 7.21
Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas ।।7.21।। व्याख्या--'यो यो यां यां तनुं भक्तः ৷৷. तामेव विदधाम्यहम्'--जो-जो मनुष्य जिस-जिस देवताका भक्त होकर श्रद्धापूर्वक यजन-पूजन करना चाहता है ,उस-उस …