Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas ।।7.1।। व्याख्या--'मय्यासक्तमनाः'--मेरेमें ही जिसका मन आसक्त हो गया है अर्थात् अधिक स्नेहके कारण जिसका मन स्वाभाविक ही मेरेमें लग गया है, चिपक गया है, उसको …
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Bhagavad Gita, Chapter 7
Bhagavad Gita 6.47
Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas ।।6.47।। व्याख्या--'योगिनामपि सर्वेषाम्'--जिनमें जडतासे सम्बन्ध-विच्छेद करनेकी मुख्यता है, जो कर्मयोग, सांख्ययोग, हठयोग, मन्त्रयोग, लययोग आदि साधनोंके …
Bhagavad Gita 6.46
Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas ।।6.46।। व्याख्या--'तपस्विभ्योऽधिको योगी'--ऋद्धि-सिद्धि आदिको पानेके लिये जो भूख-प्यास, सरदी-गरमी, आदिका कष्ट सहते हैं, वे तपस्वी हैं। इन सकाम तपस्वियोंसे …
Bhagavad Gita 6.45
Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas ।।6.45।। व्याख्या--[वैराग्यवान् योगभ्रष्ट तो तत्त्वज्ञ जीवन्मुक्त योगियोंके कुलमें जन्म लेने और वहाँ विशेषतासे यत्न करनेके कारण सुगमतासे परमात्माको प्राप्त …
Bhagavad Gita 6.44
Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas ।।6.44।। व्याख्या--पूर्वाभ्यासेन तेनैव ह्रियते ह्यवशोऽपि सः--योगियोंके कुलमें जन्म लेनेवाले योगभ्रष्टको जैसी साधनकी सुविधा मिलती है, जैसा वायुमण्डल मिलता …
Bhagavad Gita 6.43
Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas ।।6.43।। व्याख्या--'तत्र तं बुद्धिसंयोगं लभते पौर्वदेहिकम्'--तत्त्वज्ञ जीवन्मुक्त महापुरुषोंके कुलमें जन्म होनेके बाद उस वैराग्यवान् साधककी क्या दशा होती …
Bhagavad Gita 6.42
Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas ।।6.42।। व्याख्या--[साधन करनेवाले दो तरहके होते हैं वासनासहित और वासनारहित। जिसको साधन अच्छा लगता है, जिसकी साधनमें रुचि हो जाती है और जो परमात्माकी …
Bhagavad Gita 6.41
Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas ।।6.41।। व्याख्या--'प्राप्य पुण्यकृतां लोकान्'--जो लोग शास्त्रीय विधि-विधानसे यज्ञ आदि कर्मोंको साङ्गोपाङ्ग करते हैं, उन लोगोंका स्वर्गादि लोकोंपर अधिकार …
Bhagavad Gita 6.40
Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas ।।6.40।। व्याख्या--[जिसको अन्तकालमें परमात्माका स्मरण नहीं होता उसका कहीं पतन तो नहीं हो जाता--इस बातको लेकर अर्जुनके हृदयमें बहुत व्याकुलता है। यह …
Bhagavad Gita 6.39
Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas ।।6.39।। व्याख्या--एतन्मे संशयं कृष्ण छेत्तुमर्हस्यशेषतः परमात्मप्राप्तिका उद्देश्य होनेसे साधक पापकर्मोंसे तो सर्वथा रहित हो गया, इसलिये वह नरकोंमें …
Bhagavad Gita 6.38
Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas ।।6.38।। व्याख्या--[अर्जुनने पूर्वोक्त श्लोकमें कां गतिं कृष्ण गच्छति कहकर जो बात पूछी थी, उसीका इस श्लोकमें खुलासा पूछते हैं।] 'अप्रतिष्ठो …
Bhagavad Gita 6.37
Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas ।।6.37।। व्याख्या--'अयतिः श्रद्धयोपेतो योगाच्चलितमानसः'--जिसकी साधनमें अर्थात् जप, ध्यान, सत्सङ्ग, स्वाध्याय आदिमें रुचि है, श्रद्धा है और उनको करता भी है, …
Bhagavad Gita 6.36
Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas ।।6.36।। व्याख्या--असंयतात्मना योगो दुष्प्रापः--मेरे मतमें तो जिसका मन वशमें नहीं है उसके द्वारा योग सिद्ध होना कठिन है। कारण कि योगकी सिद्धिमें मनका वशमें …
Bhagavad Gita 6.35
Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas ।।6.35।। व्याख्या--'असंशयं महाबाहो मनो दुर्निग्रहं चलम्'--यहाँ 'महाबाहो' सम्बोधनका तात्पर्य शूरवीरता बतानेमें है अर्थात् अभ्यास करते हुए कभी …