Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas ।।9.15।। व्याख्या--[जैसे, भूखे आदमियोंकी भूख एक होती है और भोजन करनेपर सबकी तृप्ति भी एक होती है परन्तु उनकी भोजनके पदार्थोंमें रुचि भिन्न-भिन्न होती है। …
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Bhagavad Gita 9.14
Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas ।।9.14।। व्याख्या--'नित्ययुक्ताः'--मात्र मनुष्य भगवान्में ही नित्ययुक्त रह सकते हैं, हरदम लगे रह सकते हैं, सांसारिक भोगों और संग्रहमें नहीं। कारण कि …
Bhagavad Gita 9.13
Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas ।।9.13।। व्याख्या--'महात्मानस्तु मां पार्थ दैवीं प्रकृतिमाश्रिताः'--पूर्वश्लोकमें जिन आसुरी, राक्षसी और मोहिनी स्वभावके आश्रित मूढ़लोगोंका वर्णन किया था, …
Bhagavad Gita 9.12
Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas ।।9.12।। व्याख्या--'मोघाशाः'-- जो लोग भगवान्से विमुख होते हैं, वे सांसारिक भोग चाहते हैं, स्वर्ग चाहते हैं तो उनकी ये सब कामनाएँ व्यर्थ ही होती हैं। …
Bhagavad Gita 9.11
Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas ।।9.11।। व्याख्या--परं भावमजानन्तो मम भूतमहेश्वरम्--जिसकी सत्ता-स्फूर्ति पाकर प्रकृति अनन्त ब्रह्माण्डोंकी रचना करती है, चरअचर, स्थावर-जङ्गम प्राणियोंको …
Bhagavad Gita 9.10
Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas ।।9.10।। व्याख्या--मयाध्यक्षेण प्रकृतिः सूयते सचराचरम्-- मेरेसे सत्ता-स्फूर्ति पाकर ही प्रकृति चर-अचर, जड-चेतन आदि भौतिक सृष्टिको रचती है। जैसे बर्फका …
Bhagavad Gita 9.9
Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas ।।9.9।। व्याख्या--'उदासीनवदासीनमसक्तं तेषु कर्मसु'--महासर्गके आदिमें प्रकृतिके परवश हुए प्राणियोंकी उनके कर्मोंके अनुसार विविध प्रकारसे रचनारूप जो कर्म है, …
Bhagavad Gita 9.8
Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas ।।9.8।। व्याख्या--'भूतग्राममिमं कृत्स्नमवशं प्रकृतेर्वशात्'-- यहाँ प्रकृति शब्द व्यष्टि प्रकृतिका वाचक है। महाप्रलयके समय सभी प्राणी अपनी व्यष्टि …
Bhagavad Gita 9.7
Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas ।।9.7।। व्याख्या--'सर्वभूतानि कौन्तेय प्रकृतिं यान्ति मामिकां कल्पक्षये' -- सम्पूर्ण प्राणी मेरे ही अंश हैं और सदा मेरेमें ही स्थित रहनेवाले हैं। …
Bhagavad Gita 9.6
Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas ।।9.6।। व्याख्या--'यथाकाशस्थितो नित्यं वायुः सर्वत्रगो महान्'-- जैसे सब जगह विचरनेवाली महान् वायु नित्य ही आकाशमें स्थित रहती है अर्थात् वह कहीं …
Bhagavad Gita 9.5
Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas ।।9.5।। व्याख्या--'मया ततमिदं सर्वं जगदव्यक्तमूर्तिना'--मन-बुद्धि-इन्द्रियोंसे जिसका ज्ञान होता है, वह भगवान्का व्यक्तरूप है और जो मन-बुद्धि-इन्द्रियोंका …
Bhagavad Gita 9.4
Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas ।।9.4।। व्याख्या--'मया ततमिदं सर्वं जगदव्यक्तमूर्तिना'--मन-बुद्धि-इन्द्रियोंसे जिसका ज्ञान होता है, वह भगवान्का व्यक्तरूप है और जो मन-बुद्धि-इन्द्रियोंका …
Bhagavad Gita 9.3
Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas ।।9.3।। व्याख्या--'अश्रद्दधानाः पुरुषा धर्मस्यास्य (टिप्पणी प0 486) परंतप'--धर्म दो तरहका होता है--स्वधर्म और परधर्म। मनुष्यका जो अपना स्वतःसिद्ध …
Bhagavad Gita 9.2
Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas ।।9.2।। व्याख्या--'राजविद्या'--यह विज्ञानसहित ज्ञान सम्पूर्ण विद्याओंका राजा है; क्योंकि इसको ठीक तरहसे जान लेनेके बाद कुछ भी जानना बाकी नहीं रहता।भगवान्ने …
Bhagavad Gita 9.1
Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas ।।9.1।। व्याख्या--इदं तु ते गुह्यतमं प्रवक्ष्याम्यनसूयवे--भगवान्के मनमें जिस तत्त्वको, विषयको कहनेकी इच्छा है, उसकी तरफ लक्ष्य करानेके लिये ही यहाँ भगवान् …