Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas ।।18.55।। व्याख्या -- भक्त्या मामभिजानाति -- जब परमात्मतत्त्वमें आकर्षण? अनुराग हो जाता है? तब साधक स्वयं उस परमात्माके सर्वथा …
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Bhagavad Gita 18.54
Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas ।।18.54।। व्याख्या -- ब्रह्मभूतः -- जब अन्तःकरणमें विनाशशील वस्तुओंका महत्त्व मिट जाता है? तब अन्तःकरणकी अहंकार? घमंड आदि वृत्तियाँ …
Bhagavad Gita 18.53
Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas ।।18.53।। व्याख्या -- बुद्ध्या विशुद्धया युक्तः -- जो सांख्ययोगी साधक परमात्मतत्त्वको प्राप्त करना चाहता है? उसकी बुद्धि विशुद्ध …
Bhagavad Gita 18.52
Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas ।।18.52।। व्याख्या -- बुद्ध्या विशुद्धया युक्तः -- जो सांख्ययोगी साधक परमात्मतत्त्वको प्राप्त करना चाहता है? उसकी बुद्धि विशुद्ध …
Bhagavad Gita 18.51
Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas ।।18.51।। व्याख्या -- बुद्ध्या विशुद्धया युक्तः -- जो सांख्ययोगी साधक परमात्मतत्त्वको प्राप्त करना चाहता है? उसकी बुद्धि विशुद्ध …
Bhagavad Gita 18.50
Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas ।।18.50।। व्याख्या -- सिद्धिं प्राप्तो यथा ब्रह्म तथाप्नोति निबोध मे -- यहाँ सिद्धि नाम अन्तःकरणकी शुद्धिका है? जिसका वर्णन …
Bhagavad Gita 18.49
Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas ।।18.49।। व्याख्या -- संन्यास(सांख्य) योगका अधिकारी होनेसे ही सिद्धि होती है। अतः उसका अधिकारी कैसा होना चाहिये -- यह बतानेके लिये श्लोकके …
Bhagavad Gita 18.48
Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas ।।18.48।। व्याख्या -- [पूर्वश्लोकमें यह कहा गया कि स्वभावके अनुसार शास्त्रोंने जो कर्म नियत किये हैं? उन कर्मोंको करता हुआ मनुष्य पापको प्राप्त …
Bhagavad Gita 18.47
Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas ।।18.47।। व्याख्या -- श्रेयान्स्वधर्मो विगुणः परधर्मात्स्वनुष्ठितात् -- यहाँ स्वधर्म शब्दसे वर्णधर्म ही मुख्यतासे लिया गया …
Bhagavad Gita 8.17
Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas ।।8.17।। व्याख्या--सहस्रयुगपर्यन्तम् ৷৷. तेऽहोरात्रविदो जनाः --सत्य, त्रेता, द्वापर और कलि--मृत्युलोकके इन चार युगोंको एक चतुर्युगी कहते हैं। ऐसी एक हजार …
Bhagavad Gita 18.46
Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas ।।18.46।। व्याख्या -- यतः प्रवृत्तिर्भूतानां येन सर्वमिदं ततम् -- जिस परमात्मासे संसार पैदा हुआ है? जिससे सम्पूर्ण संसारका संचालन …
Bhagavad Gita 18.45
Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas ।।18.45।। व्याख्या -- स्वे स्वे कर्मण्यभिरतः संसिद्धिं लभते नरः -- गीताके अध्ययनसे ऐसा मालूम होता है कि मनुष्यकी जैसी स्वतःसिद्ध …
Bhagavad Gita 18.44
Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas ।।18.44।। व्याख्या -- कृषिगौरक्ष्यवाणिज्यं वैश्यकर्म स्वभावजम् -- खेती करना? गायोंकी रक्षा करना? उनकी वंशवृद्धि करना और शुद्ध व्यापार …
Bhagavad Gita 5.2 – Saṃnyāsaḥ Karmayogaśca
श्रीभगवानुवाच ।संन्यासः कर्मयोगश्च निःश्रेयसकरावुभौ ।तयोस्तु कर्मसंन्यासात्कर्मयोगो विशिष्यते ॥2॥ śrībhagavānuvācasaṃnyāsaḥ karmayogaśca niḥśreyasakarāvubhautayostu karmasaṃnyāsātkarmayogo …
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Bhagavad Gita 18.43
Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas ।।18.43।। व्याख्या -- शौर्यम् -- मनमें अपने धर्मका पालन करनेकी तत्परता हो? धर्ममय युद्ध (टिप्पणी प0 928) प्राप्त …