Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas ।।10.20।। व्याख्या--[भगवान्का चिन्तन दो तरहसे होता है-- (1) साधक अपना जो इष्ट मानता है, उसके सिवाय दूसरा कोई भी चिन्तन न हो। कभी हो भी जाय तो मनको वहाँसे …
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Bhagavad Gita 10.19
Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas ।।10.19।। व्याख्या--'हन्त ते कथयिष्यामि दिव्या ह्यात्मविभूतयः'--योग और विभूति कहनेके लिये अर्जुनकी जो प्रार्थना है, उसको 'हन्त' अव्ययसे स्वीकार …
Bhagavad Gita 10.17
Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas ।।10.17।। व्याख्या--'कथं विद्यामहं योगिंस्त्वां सदा परिचिन्तयन्'--सातवें श्लोकमें भगवान्ने कहा कि जो मेरी विभूति और योगको तत्त्वसे जानता है, वह अविचल …
Bhagavad Gita 10.16
Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas ।।10.16।। व्याख्या--'याभिर्विभूतिभिर्लोकानिमांस्त्वं व्याप्य तिष्ठसि' -- भगवान्ने पहले (सातवें श्लोकमें) यह बात कही थी कि जो मनुष्य मेरी विभूतियोंको …
Bhagavad Gita 10.15
Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas ।।10.15।। व्याख्या--'भूतभावन भूतेश देवदेव जगत्पते पुरुषोत्तम'--सम्पूर्ण प्राणियोंको संकल्पमात्रसे उत्पन्न करनेवाले होनेसे आप 'भूतभावन' हैं; सम्पूर्ण …
Bhagavad Gita 10.14
Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas ।।10.14।। व्याख्या --'सर्वमेतदृतं मन्ये यन्मां वदसि केशव '-- क नाम ब्रह्माका है, 'अ' नाम विष्णुका है, 'ईश' नाम शंकरका है और 'व' नाम वपु अर्थात् …
Bhagavad Gita 10.13
Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas ।।10.13।। व्याख्या --'परं ब्रह्म परं धाम पवित्रं परमं भवान्'-- अपने सामने बैठे हुए भगवान्की स्तुति करते हुए अर्जुन कहते हैं कि मेरे पूछनेपर जिसको आपने …
Bhagavad Gita 10.12
Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas ।।10.12।। व्याख्या --'परं ब्रह्म परं धाम पवित्रं परमं भवान्'-- अपने सामने बैठे हुए भगवान्की स्तुति करते हुए अर्जुन कहते हैं कि मेरे पूछनेपर जिसको आपने …
Bhagvad Gita 10.11
Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas ।।10.11।। व्याख्या--'तेषामेवानुकम्पार्थमहमज्ञानजं तमः'--उन भक्तोंके हृदयमें कुछ भी सांसारिक इच्छा नहीं, होती। इतना ही नहीं, उनके भीतर मुझे छोड़कर …
Bhagavad Gita 10.18
Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas ।।10.18।। व्याख्या--'विस्तरेणात्मनो योगं विभूतिं च जनार्दन'--भगवान्ने सातवें और नवें अध्यायमें ज्ञानविज्ञानका विषय खूब कह दिया। इतना कहनेपर भी उनकी तृप्ति …
Bhagavad Gita 10.10
Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas ।।10.10।। व्याख्या --[भगवन्निष्ठ भक्त भगवान्को छोड़कर न तो समता चाहते हैं, न तत्त्वज्ञान चाहते हैं तथा न और ही कुछ चाहते हैं (टिप्पणी प0 546.3)। …
Bhagavad Gita 10.9
Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas ।।10.9।। व्याख्या--[भगवान्से ही सब उत्पन्न हुए हैं और भगवान्से ही सबकी चेष्टा हो रही है अर्थात् सबके मूलमें परमात्मा है -- यह बात जिनको दृढ़तासे और …
Bhagavad Gita 10.8
Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas ।।10.8।। व्याख्या --[पूर्व श्लोककी बात ही इस श्लोकमें कही गयी है। 'अहं सर्वस्य प्रभवः' में 'सर्वस्य' भगवान्की विभूति है अर्थात् देखने, …
Bhgavad Gita 10.7
Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas ।।10.7।। व्याख्या --'एतां विभूतिं योगं च मम--एताम्' सर्वनाम अत्यन्त समीपका लक्ष्य कराता है। यहाँ यह शब्द चौथेसे छठे श्लोकतक कही हुई विभूति और योगका …
Bhagavad Gita 10.6
Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas ।।10.6।। व्याख्या --[पीछेके दो श्लोकोंमें भगवान्ने प्राणियोंके भाव-रूपसे बीस विभूतियाँ बतायीं। अब इस श्लोकमें व्यक्ति-रूपसे पचीस विभूतियाँ बता रहे हैं, जो …