Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas ।।11.20।। व्याख्या--'महात्मन्'-- इस सम्बोधनका तात्पर्य है कि आपके स्वरूपके समान किसीका स्वरूप हुआ नहीं, है नहीं, होगा नहीं और हो सकता भी नहीं। इसलिये …
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Bhagavad Gita 11.19
Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas ।।11.19।। व्याख्या--'अनादिमध्यान्तम्'--आप आदि, मध्य और अन्तसे रहित हैं अर्थात् आपकी कोई सीमा नहीं है।सोलहवें श्लोकमें भी अर्जुनने कहा है कि मैं आपके आदि, …
Bhagavad Gita 11.48
Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas ।।11.48।। व्याख्या--'कुरुप्रवीर'--यहाँ अर्जुनके लिये 'कुरुप्रवीर' सम्बोधन देनेका अभिप्राय है कि सम्पूर्ण कुरुवंशियोंमें मेरेसे उपदेश सुननेकी, मेरे रूपको …
Bhagavad Gita 11.18
Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas ।।11.18।। व्याख्या--'त्वमक्षरं परमं वेदितव्यम्'-- वेदों, शास्त्रों, पुराणों, स्मृतियों, सन्तोंकी वाणियों और तत्त्वज्ञ जीवन्मुक्त महापुरुषोंद्वारा …
Bhagavad Gita 11.17
Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas ।।11.17।। व्याख्या--'किरीटिनं गदिनं चक्रिणं च'--आपको मैं किरीट, गदा और चक्र धारण किये हुए देख रहा हूँ। यहाँ 'च' पदसे शङ्क और पद्मको भी ले लेना …
Bhagavad Gita 11.16
Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas ।।11.16।। व्याख्या--'विश्वरूप',विश्वेश्वर'--इन दो सम्बोधनोंका तात्पर्य है कि मेरेको जो कुछ भी दीख रहा है, वह सब आप ही हैं और इस विश्वके मालिक भी आप ही हैं। …
Bhagavad Gita 11.15
Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas ।।11.15।। व्याख्या--पश्यामि देवांस्तव देव देहे सर्वांस्तथा भूतविशेषसङ्घान्--अर्जुनकी भगवत्प्रदत्त दिव्य दृष्टि इतनी विलक्षण है कि उनको देवलोक भी अपने सामने …
Bhagavad Gita 11.14
Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas ।।11.14।। व्याख्या--ततः स विस्मयाविष्टो हृष्टरोमा धनञ्जयः--अर्जुनने भगवान्के रूपके विषयमें जैसी कल्पना भी नहीं की थी, वैसा रूप देखकर उनको बड़ा आश्चर्य हुआ। …
Bhagavad Gita 11.13
Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas ।।11.13।। व्याख्या--'तत्रैकस्थं जगत्कृत्स्नं प्रविभक्तमनेकधा'--अनेक प्रकारके विभागोंमें विभक्त अर्थात् ये देवता हैं, ये मनुष्य हैं, ये पशु-पक्षी हैं, यह …
Bhagavad Gita 11.11
Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas ।।11.11।। व्याख्या--'अनेकवक्त्रनयनम्'--विराट्रूपसे प्रकट हुए भगवान्के जितने मुख और नेत्र दीख रहे हैं, वे सब-के-सब दिव्य हैं। विराट्रूपमें जितने प्राणी दीख …
Bhagavad Gita 11.10
Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas ।।11.10।। व्याख्या--'अनेकवक्त्रनयनम्'--विराट्रूपसे प्रकट हुए भगवान्के जितने मुख और नेत्र दीख रहे हैं, वे सब-के-सब दिव्य हैं। विराट्रूपमें जितने प्राणी दीख …
Bhagavad Gita 11.9
Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas ।।11.9।। व्याख्या--'एवमुक्त्वा ततो ৷৷. परमं रूपमैश्वरम्'--पूर्वश्लोकमें भगवान्ने जो यह कहा था कि 'तू अपने चर्मचक्षुओंसे मुझे नहीं देख सकता, इसलिये मैं …
Bhagavad Gita 11.8
Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas ।।11.8।। व्याख्या--'न तु मां शक्यसे द्रष्टुमनेनैव स्वचक्षुषा'--तुम्हारे जो चर्मचक्षु हैं, इनकी शक्ति बहुत अल्प और सीमित है। प्राकृत होनेके कारण ये …
Bhagavad Gita 11.6
Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas ।।11.6।। व्याख्या--'पश्यादित्यान्वसून्रुद्रानश्विनौ मरुतस्तथा'-- अदितिके पुत्र धाता, मित्र, अर्यमा, शुक्र, वरुण, अंश, भग, विवस्वान्, पूषा, सविता, त्वष्टा …
Bhagavad Gita 11.12
Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas ।।11.12।। व्याख्या--'दिवि सूर्यसहस्रस्य ৷৷. तस्य महात्मनः'--जैसे आकाशमें हजारों तारे एक साथ उदित होनेपर भी उन सबका मिला हुआ प्रकाश एक चन्द्रमाके प्रकाशके …