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Bhagavad Gita 12.20
Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas ।।12.20।। व्याख्या -- ये तु -- यहाँ ये पदसे भगवान्ने उन साधक भक्तोंका संकेत किया है? जिनके विषयमें अर्जुनने पहले श्लोकमें …
Bhagavad Gita 12.19
Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas ।।12.19।। व्याख्या--'समः शत्रौ च मित्रे च'--यहाँ भगवान्ने भक्तमें व्यक्तियोंके प्रति होनेवाली समताका वर्णन किया है। सर्वत्र भगवद्बुद्धि होने तथा …
Bhagavad Gita 12.18
Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas ।।12.18।। व्याख्या -- समः शत्रौ च मित्रे च -- यहाँ भगवान्ने भक्तमें व्यक्तियोंके प्रति होनेवाली समताका वर्णन किया है। सर्वत्र …
Bhagavad Gita 12.17
Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas ।।12.17।। व्याख्या--'यो न हृष्यति न द्वेष्टि न शोचति न काङ्क्षति'--मुख्य विकार चार हैं -- (1) राग, (2) द्वेष, (3) हर्ष और (4) शोक (टिप्पणी …
Bhagavad Gita 12.16
Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas ।।12.16।। व्याख्या--'अनपेक्षः'--भक्त भगवान्को ही सर्वश्रेष्ठ मानता है। उसकी दृष्टिमें भगवत्प्राप्तिसे बढ़कर दूसरा कोई लाभ नहीं होता। अतः संसारकी किसी भी …
Bhagavad Gita 12.15
Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas ।।12.15।। व्याख्या--'यस्मान्नोद्विजते लोकः'--भक्त सर्वत्र और सबमें अपने परमप्रिय प्रभुको ही देखता है। अतः उसकी दृष्टिमें मन, वाणी और शरीरसे होनेवाली …
Bhagavad Gita 12.14
Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas ।।12.14।। व्याख्या--'अद्वेष्टा सर्वभूतानाम्'--अनिष्ट करनेवालोंके दो भेद हैं -- (1) इष्टकी प्राप्तिमें अर्थात् धन, मान-बड़ाई, आदर-सत्कार आदिकी प्राप्तिमें …
Bhagavad Gita 12.13
Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas ।।12.13।। व्याख्या --'अद्वेष्टा सर्वभूतानाम्'-- अनिष्ट करनेवालोंके दो भेद हैं -- (1) इष्टकी प्राप्तिमें अर्थात् धन, मान-बड़ाई, आदर-सत्कार आदिकी …
Bhagavad Gita 12.12
Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas ।।12.12।। व्याख्या--[भगवान्ने आठवें श्लोकसे ग्यारहवें श्लोकतक एक-एक साधनमें असमर्थ होनेपर क्रमशः समर्पण-योग, अभ्यासयोग, भगवदर्थ कर्म और कर्मफल-त्याग--ये …
Bhagavad Gita 12.11
Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas ।।12.11।। व्याख्या--'अथैतदप्यशक्तोऽसि कर्तुं मद्योगमाश्रितः'--पूर्वश्लोकमें भगवान्ने अपने लिये ही सम्पूर्ण कर्म करनेसे अपनी प्राप्ति बतायी और अब इस …
Bhagavad Gita 12.10
Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas ।।12.10।। व्याख्या--'अभ्यासेऽप्यसमर्थोऽसि मत्कर्मपरमो भव'-- यहाँ 'अभ्यासे' पदका अभिप्राय पीछेके (नवें) श्लोकमें वर्णित अभ्यासयोग से है। …
Bhagavad Gita 12.9
Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas ।।12.9।। व्याख्या--अथ चित्तं समाधातुं ৷৷. मामिच्छाप्तुं धनञ्जय--यहाँ 'चित्तम्' पदका अर्थ 'मन' है। परन्तु इस श्लोकका पीछेके श्लोकमें वर्णित साधनसे …
Bhagavad Gita 12.8
Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas ।।12.8।। व्याख्या--'मय्येव मन आधत्स्व मयि बुद्धिं निवेशय'-- भगवान्के मतमें वे ही पुरुष उत्तम योगवेत्ता हैं, जिनको भगवान्के साथ अपने नित्ययोगका अनुभव …
Bhagavad Gita 12.7
Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas ।।12.7।। व्याख्या--'तेषामहं समुद्धर्ता ৷৷. मय्यावेशितचेतसाम्'--जिन साधकोंका लक्ष्य, उद्देश्य, ध्येय,भगवान् ही बन गये हैं और जिन्होंने भगवान्में ही अनन्य …