भयाद्रणादुपरतं मंस्यन्ते त्वां महारथाः ।येषां च त्वं बहुमतो भूत्वा यास्यसि लाघवम् ॥35॥ bhayādraṇāduparataṃ maṃsyante tvāṃ mahārathāḥyeṣāṃ ca tvaṃ bahumato bhūtvā yāsyasi lāghavam bhayāt = …
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Bhagavad Gita 2.13 – Dehino ’smin Yathā
देहिनोऽस्मिन्यथा देहे कौमारं यौवनं जरा ।तथा देहान्तरप्राप्तिर्धीरस्तत्र न मुह्यति ॥ २-१३॥ dehino’sminyathā dehe kaumāraṃ yauvanaṃ jarātathā dehāntaraprāptirdhīrastatra na …
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Bhagavad Gita 14.27
Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas ।।14.27।। व्याख्या -- ब्रह्मणो हि प्रतिष्ठाहम् -- मैं ब्रह्मकी प्रतिष्ठा? आश्रय हूँ -- ऐसा कहनेका तात्पर्य ब्रह्मसे अपनी अभिन्नता …
Bhagavad Gita 14.26
Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas ।।14.26।। व्याख्या -- [यद्यपि भगवान्ने इसी अध्यायके उन्नीसवेंबीसवें श्लोकोंमें गुणोंका अतिक्रमण करनेका उपाय बता दिया था? तथापि अर्जुनने …
Bhagavad Gita 14.25
Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas ।।14.25।। व्याख्या -- धीरः? समदुःखसुखः -- नित्यअनित्य? सारअसार आदिके तत्त्वको जानकर स्वतःसिद्ध स्वरूपमें स्थित होनेसे गुणातीत मनुष्य …
Bhagavad Gita 14.24
Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas ।।14.24।। व्याख्या -- धीरः? समदुःखसुखः -- नित्यअनित्य? सारअसार आदिके तत्त्वको जानकर स्वतःसिद्ध स्वरूपमें स्थित होनेसे गुणातीत मनुष्य …
Bhagavad Gita 14.23
Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas ।।14.23।। व्याख्या -- उदासीनवदासीनः -- दो व्यक्ति परस्पर विवाद करते हों? तो उन दोनोंमेंसे किसी एकका पक्ष लेनेवाला पक्षपाती …
Bhagavad Gita 14.22
Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas ।।14.22।। व्याख्या -- प्रकाशं च -- इन्द्रियों और अन्तःकरणकी स्वच्छता? निर्मलताका नाम प्रकाश है। तात्पर्य है कि जिससे इन्द्रियोंके …
Bhagavad Gita 14.21
Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas ।।14.21।। व्याख्या -- कैर्लिङ्गैस्त्रीन्गुणानेतानतीतो भवति प्रभो -- हे प्रभो मैं यह जानना चाहता हूँ कि जो गुणोंका अतिक्रमण कर चुका …
Bhagavad Gita 14.19
Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas ।।14.19।। व्याख्या -- नान्यं गुणेभ्यः ৷৷. मद्भावं सोऽधिगच्छति -- गुणोंके सिवाय अन्य कोई कर्ता है ही नहीं अर्थात् सम्पूर्ण क्रियाएँ …
Bhagavad Gita 14.18
Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas ।।14.18।। व्याख्या -- ऊर्ध्वं गच्छन्ति सत्त्वस्थाः -- जिनके जीवनमें सत्त्वगुणकी प्रधानता रही है और उसके कारण जिन्होंने भोगोंसे संयम …
Bhagavad Gita 14.17
Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas ।।14.17।। व्याख्या -- सत्त्वात्संजायते ज्ञानम् -- सत्त्वगुणसे ज्ञान होता है अर्थात् सुकृतदुष्कृत कर्मोंका विवेक जाग्रत् होता है। उस …
Bhagavad Gita 14.16
Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas ।।14.16।। व्याख्या -- [वास्तवमें कर्म न सात्त्विक होते हैं? न राजस होते हैं और न तामस ही होते हैं। सभी कर्म क्रियामात्र ही होते हैं। वास्तवमें …
Bhagavad Gita 14.15
Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas ।।14.15।। व्याख्या -- रजसि प्रलयं गत्वा कर्मसङ्गिषु जायते -- अन्तसमयमें जिसकिसी भी मनुष्यमें जिसकिसी कारणसे रजोगुणकी लोभ? प्रवृत्ति? …
Bhagavad Gita 14.14
Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas ।।14.14।। व्याख्या -- यदा सत्त्वे प्रवृद्धे ৷৷. प्रतिपद्यते -- जिस कालमें जिसकिसी भी देहधारी मनुष्यमें? चाहे वह सत्त्वगुणी? रजोगुणी …