यदा संहरते चायं कूर्मोऽङ्गानीव सर्वशः ।इन्द्रियाणीन्द्रियार्थेभ्यस्तस्य प्रज्ञा प्रतिष्ठिता ॥58॥ yadā saṃharate cāyaṃ kūrmo’ṅgānīva sarvaśaḥindriyāṇīndriyārthebhyastasya prajñā …
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Voice of Vivekananda
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यदा संहरते चायं कूर्मोऽङ्गानीव सर्वशः ।इन्द्रियाणीन्द्रियार्थेभ्यस्तस्य प्रज्ञा प्रतिष्ठिता ॥58॥ yadā saṃharate cāyaṃ kūrmo’ṅgānīva sarvaśaḥindriyāṇīndriyārthebhyastasya prajñā …
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कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन ।मा कर्मफलहेतुर्भूर्मा ते सङ्गोऽस्त्वकर्मणि ॥47॥ karmaṇyevādhikāraste mā phaleṣu kadācanamā karmaphalaheturbhūrmā te saṅgo’stvakarmaṇi karmāṇi = in …
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प्रसादे सर्वदुःखानां हानिरस्योपजायते ।प्रसन्नचेतसो ह्याशु बुद्धिः पर्यवतिष्ठते ॥65॥ prasāde sarvaduḥkhānāṃ hānirasyopajāyateprasannacetaso hyāśu buddhiḥ paryavatiṣṭhate prasādaṃ = the …
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मनुष्यके पास चिन्तन करनेकी जो शक्ति है, उसको भगवान्के चिन्तनमें ही लगाना चाहिये। संसारमें जिस किसीमें, जहाँ-कहीं विलक्षणता, विशेषता, महत्ता, अलौकिकता, सुन्दरता आदि दीखती है, उसमें मन खिंचता है, वह …
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इस संसारका मूल आधार और इस संसारमें अत्यन्त श्रेष्ठ परमपुरुष एक परमात्मा ही है-इसको दृढ़तापूर्वक मान लेनेसे मनुष्य सर्ववित् हो जाता है, कृतकृत्य हो जाता है। जिससे यह संसार अनादिकालसे चला आ रहा है और …
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संसारमें एक परमात्मतत्त्व ही जाननेयोग्य है। उसको जरूर जान लेना चाहिये। उसको तत्त्वसे जाननेपर जाननेवालेकी परमात्मतत्त्वके साथ अभिन्नता हो जाती है। जिस परमात्माको जाननेसे अमरताकी प्राप्ति हो जाती है, …
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भक्त भगवान्का अत्यन्त प्यारा होता है; क्योंकि वह शरीर-इन्द्रियाँ-मन-बुद्धिसहित अपने-आपको भगवान्के अर्पण कर देता है। जो परम श्रद्धापूर्वक अपने मनको भगवान्में लगाते हैं, वे भक्त सर्वश्रेष्ठ हैं। …
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अर्जुनने भगवान्की कृपासे जिस दिव्य विश्वरूपके दर्शन किये, उसको तो हरेक मनुष्य नहीं देख सकता; परन्तु आदि-अवताररूपसे प्रकट हुए इस संसारको श्रद्धापूर्वक भगवान्का रूप मानकर तो हरेक मनुष्य विश्वरूपके दर्शन …
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सब कुछ वासुदेव ही है, भगवद्रूप ही है- इसका मनुष्यको अनुभव कर लेना चाहिये। सूतके मणियोंसे बनी हुई मालामें सूतकी तरह भगवान् ही सब संसारमें ओत-प्रोत हैं। पृथ्वी, जल, तेज आदि तत्त्वोंमें; चन्द्र, सूर्य …
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इस मनुष्यलोकमें सभीको निष्कामभावपूर्वक अपने कर्तव्यका तत्परतासे पालन करना चाहिये, चाहे वह ज्ञानी हो या अज्ञानी हो, चाहे वह भगवान्का अवतार ही क्यों न हो! कारण कि सृष्टिचक्र अपने-अपने कर्तव्यका पालन …
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अपने विवेकको महत्त्व देना और अपने कर्तव्यका पालन करना- इन दोनों उपायोंमेंसे किसी भी एक उपायको मनुष्य दृढ़तासे काममें लाये तो शोक-चिन्ता मिट जाते हैं। जितने शरीर दीखते हैं, वे सभी नष्ट होनेवाले हैं, …
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न हि कश्चित्क्षणमपि जातु तिष्ठत्यकर्मकृत् ।कार्यते ह्यवशः कर्म सर्वः प्रकृतिजैर्गुणैः ॥5॥ na hi kaścitkṣaṇamapi jātu tiṣṭhatyakarmakṛtkāryate hyavaśaḥ karma sarvaḥ prakṛtijairguṇaiḥ na = …
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व्यवसायात्मिका बुद्धिरेकेह कुरुनन्दन ।बहुशाखा ह्यनन्ताश्च बुद्धयोऽव्यवसायिनाम् ॥41॥ vyavasāyātmikā buddhirekeha kurunandanabahuśākhā hyanantāśca buddhayo’vyavasāyinām vyavasāyātmikā = …
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अवाच्यवादांश्च बहून्वदिष्यन्ति तवाहिताः ।निन्दन्तस्तव सामर्थ्यं ततो दुःखतरं नु किम् ॥36॥ avācyavādāṃśca bahūnvadiṣyanti tavāhitāḥnindantastava sāmarthyaṃ tato duḥkhataraṃ nu kim And many …
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अव्यक्तादीनि भूतानि व्यक्तमध्यानि भारत ।अव्यक्तनिधनान्येव तत्र का परिदेवना ॥28॥ avyaktādīni bhūtāni vyaktamadhyāni bhārataavyaktanidhanānyeva tatra kā paridevanā avyaktādīni = in the …