Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas ।।15.10।। व्याख्या -- उत्क्रामन्तम् -- स्थूलशरीरको छोड़ते समय जीव सूक्ष्म और कारणशरीरको साथ लेकर प्रस्थान करता है। इसी क्रियाको …
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Bhagavad Gita 2.69 – Yā Niśā Sarvabhūtānāṃ
या निशा सर्वभूतानां तस्यां जागर्ति संयमी ।यस्यां जाग्रति भूतानि सा निशा पश्यतो मुनेः ॥69॥ yā niśā sarvabhūtānāṃ tasyāṃ jāgarti saṃyamīyasyāṃ jāgrati bhūtāni sā niśā paśyato muneḥ yā = …
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Bhagavad Gita 2.61 – Tāni Sarvāṇi
तानि सर्वाणि संयम्य युक्त आसीत मत्परः ।वशे हि यस्येन्द्रियाणि तस्य प्रज्ञा प्रतिष्ठिता ॥61॥ tāni sarvāṇi saṃyamya yukta āsīta matparaḥvaśe hi yasyendriyāṇi tasya prajñā pratiṣṭhitā tāni = …
Bhagavad Gita 15.9
Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas ।।15.9।। व्याख्या -- अधिष्ठाय मनश्चायम् -- मनमें अनेक प्रकारके (अच्छेबुरे) संकल्पविकल्प होते रहते हैं। इनसे स्वयं की स्थितिमें कोई …
Bhagavad Gita 2.68 – Tasmād Yasya
तस्माद्यस्य महाबाहो निगृहीतानि सर्वशः ।इन्द्रियाणीन्द्रियार्थेभ्यस्तस्य प्रज्ञा प्रतिष्ठिता ॥68॥ tasmādyasya mahābāho nigṛhītāni sarvaśaḥindriyāṇīndriyārthebhyastasya prajñā …
Bhagavad Gita 2.62 & 2.63 – Dhyayato Visayan Pumsah
ध्यायतो विषयान्पुंसः सङ्गस्तेषूपजायते ।सङ्गात्सञ्जायते कामः कामात्क्रोधोऽभिजायते ॥ २-६२॥क्रोधाद्भवति सम्मोहः सम्मोहात्स्मृतिविभ्रमः ।स्मृतिभ्रंशाद् बुद्धिनाशो बुद्धिनाशात्प्रणश्यति ॥ २-६३॥ dhyāyato …
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Bhagavad Gita 15.8
Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas ।।15.8।। व्याख्या -- वायुर्गन्धानिवाशयात् -- जिस प्रकार वायु इत्रके फोहेसे गन्ध ले जाती है किन्तु वह गन्ध स्थायीरूपसे वायुमें नहीं …
Bhagavad Gita 2.72 – Eṣhā Brāhmī
एषा ब्राह्मी स्थितिः पार्थ नैनां प्राप्य विमुह्यति ।स्थित्वास्यामन्तकालेऽपि ब्रह्मनिर्वाणमृच्छति ॥72॥ eṣā brāhmī sthitiḥ pārtha naināṃ prāpya vimuhyatisthitvāsyāmantakāle’pi …
Bhagavad Gita 15.7
Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas ।।15.7।। व्याख्या -- ममैवांशो जीवलोके जीवभूतः सनातनः -- जिनके साथ जीवकी तात्त्विक अथवा स्वरूपकी एकता नहीं है? ऐसे प्रकृति और …
Bhagavad Gita 15.6
Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas ।।15.6।। व्याख्या -- [छठा श्लोक पाँचवें और सातवें श्लोकोंको जोड़नेवाला है। इन श्लोकोंमें भगवान् यह बताते हैं कि वह अविनाशी पद मेरा ही धाम है? …
Bhagavad Gita 15.5
Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas ।।15.5।। व्याख्या -- निर्मानमोहाः -- शरीरमें मैंमेरापन होनेसे ही मान? आदरसत्कारकी इच्छा होती है। शरीरसे अपना सम्बन्ध माननेके कारण ही …
Bhagavad Gita 15.4
Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas ।।15.4।। व्याख्या--'ततः पदं तत्परिमार्गितव्यम्'--भगवान्ने पूर्वश्लोकमें 'छित्त्वा' पदसे संसारसे सम्बन्ध-विच्छेद करनेकी बात कही है। इससे यह सिद्ध …
Bhagavad Gita 15.3
Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas ।।15.3।। व्याख्या -- न रूपमस्येह तथोपलभ्यते -- इसी अध्यायके पहले श्लोकमें संसारवृक्षके विषयमें कहा गया है कि लोग इसको अव्यय (अविनाशी) …
Bhagavad Gita Chapter 18 Overview
मनुष्यमात्रके उद्धारके लिये उनकी रुचि, योग्यता और श्रद्धाके अनुसार तीन साधन बताये गये हैं-कर्मयोग, ज्ञानयोग और भक्तियोग (शरणागति)। इनमेंसे किसी भी एक साधनमें मनुष्य लग जाय तो उसका उद्धार हो जाता …
Bhagavad Gita Chapter 9 Overview
सभी मनुष्य भगवत्प्राप्तिके अधिकारी हैं, चाहे वे किसी भी वर्ण, आश्रम, सम्प्रदाय, देश, वेश आदिके क्यों न हों। वे सभी भगवान्की तरफ चल सकते हैं, भगवान्का आश्रय लेकर भगवान्को प्राप्त कर सकते …