कुर्वन्नेवेह कर्माणि जिजीविषेच्छतं समाः ।
एवं त्वयि नान्यथेतोऽस्ति न कर्म लिप्यते नरे ॥ २ ॥
Commentary:
इस संसार में सौ वर्षों तक जीने की इच्छा करो। कर्म में लिप्त न होओ। तुम्हारे लिये अन्य कोई मार्ग नहीं है। कितने साल जीवित रहना चाहोगे? सौ वर्ष ? अरे मरते दम तक काम करो, कहाँ भागना चाहते हो? जैसे कहते हैं कि न, अब हम रिटायर होंगे। अरे, कहाँ रिटायर होगे? उपनिषद् रिटायर की बात कहती ही नहीं। वह कहती है कि कुर्वन्नेवेह कर्माणि इस संसार में, इस जीवन में कर्म करते हुए ही, यहाँ ‘ही’ शब्द से जोर दिया गया है। क्या करो? जिजीविषेच्छतं समाः – सौ वर्ष तक जीने की इच्छा करो। सौ वर्ष माने यह परम आयु है। जैसे जब वर-वधु प्रदक्षिणा करते हैं, सप्तपदी करते हैं, तो हम कहते हैं न, सौ साल तक जीयें। वेदों में कहा है कि पुरुष की जो परम आयु है, वह सौ वर्ष की है – शतायुर्वे पुरुषः। ऐसा कहा गया है। तुम सौ वर्ष तक जीने की इच्छा करते हुए ही ऐसे कर्म करो, इस ढंग से कर्म करो कि कर्म चिपके नहीं – न कर्म लिप्यते नरे। इसके अतिरिक्त दूसरा कोई उपाय नहीं है, यही उपाय है। तुम नर हो, तुम नेता हो, तुम काम करो। तुम क्यों इस प्रकार कहते हो कि काम नहीं करूँगा? सौ साल तक जीने की इच्छा करो।
यह यहाँ पहले श्लोक में सिद्धान्त कहा गया है। दूसरा श्लोक उसका प्रयोग है। पहला है ज्ञान और दूसरा है कर्म। तो सिद्धान्त और प्रयोग को एक साथ लेकर चलो। यह सिद्धान्त है कि ईश्वर ही सबमें विराजित हैं। इस प्रकार से देखने की यह दृष्टि है कि इस संसार में जो कुछ दिखाई देता है, सबमें ईश्वर ही विराजित हैं, यह संसार ईश्वर का बैठकखाना है, यह जो ज्ञान है, यह ज्ञान ही त्याग है। इस त्याग के द्वारा संसार का उपयोग करो। जो सम्पत्ति तुम्हें मिली है, वह भगवान् ने ही तुम्हें दी है, तुम उसके न्यासी हो, ट्रस्टी हो, उसका सदुपयोग करो और सौ वर्ष तक जीने की इच्छा करो। जैसे सैकड़ा मानते हैं न, जैसे नींबू का सैकड़ा मानते हैं, आम का सैकड़ा मानते हैं, गाँव में एक सौ बीस का, रत्तल का सैकड़ा मानते हैं एक सौ बारह का, नाम का सैकड़ा मानते हैं एक सौ आठ का। एक सौ आठ जैसे जप करते हैं, यह सैकड़ा है, उसी प्रकार आयु का सैकड़ा मानते थे एक सौ सोलह वर्ष का। छान्दोग्य उपनिषद् में है कि आयु का सैकड़ा माने एक सौ सोलह वर्ष का। चौबीस साल अध्ययन में लगाओ, चवालीस साल कर्मयोग करो और बाकी अड़तालीस साल चिन्तन में। माने जब ६८ साल के हो गये, उसके बाद चिन्तन में। चिन्तन में कर्म भी रहेगा। माने यहाँ पर चिन्तन की प्रमुखता है, पर कर्म गौण नहीं है। कर्म बना रहेगा जीवन में। यह मानो बाँटा गया है, इस प्रकार से सौ वर्ष तक जीने की इच्छा करो, यह यहाँ पर कहा गया। यदि ऐसा नहीं करोगे, सिद्धान्त को यदि तुमने प्रयोगं में नहीं उतारा, तो कहते हैं –