Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas ।।11.9।। व्याख्या--'एवमुक्त्वा ततो ৷৷. परमं रूपमैश्वरम्'--पूर्वश्लोकमें भगवान्ने जो यह कहा था कि 'तू अपने चर्मचक्षुओंसे मुझे नहीं देख सकता, इसलिये मैं …
Bhagavad Gita 11.8
Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas ।।11.8।। व्याख्या--'न तु मां शक्यसे द्रष्टुमनेनैव स्वचक्षुषा'--तुम्हारे जो चर्मचक्षु हैं, इनकी शक्ति बहुत अल्प और सीमित है। प्राकृत होनेके कारण ये …
Bhagavad Gita 11.6
Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas ।।11.6।। व्याख्या--'पश्यादित्यान्वसून्रुद्रानश्विनौ मरुतस्तथा'-- अदितिके पुत्र धाता, मित्र, अर्यमा, शुक्र, वरुण, अंश, भग, विवस्वान्, पूषा, सविता, त्वष्टा …
Bhagavad Gita 11.12
Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas ।।11.12।। व्याख्या--'दिवि सूर्यसहस्रस्य ৷৷. तस्य महात्मनः'--जैसे आकाशमें हजारों तारे एक साथ उदित होनेपर भी उन सबका मिला हुआ प्रकाश एक चन्द्रमाके प्रकाशके …
Bhagavad Gita 11.7
Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas ।।11.7।। व्याख्या--गुडाकेश'--निद्रापर अधिकार प्राप्त करनेसे अर्जुनको 'गुडाकेश' कहते हैं। यहाँ यह सम्बोधन देनेका तात्पर्य है कि तू निरालस्य होकर सावधानीसे …
Bhagavad Gita 11.5
Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas ।।11.5।। व्याख्या--'पश्य मे पार्थ रूपाणि शतशोऽथ सहस्रशः'--अर्जुनकी संकोचपूर्वक प्रार्थनाको सुनकर भगवान् अत्यधिक प्रसन्न हुए; अतः अर्जुनके …