Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas ।।18.45।। व्याख्या -- स्वे स्वे कर्मण्यभिरतः संसिद्धिं लभते नरः -- गीताके अध्ययनसे ऐसा मालूम होता है कि मनुष्यकी जैसी स्वतःसिद्ध …
Bhagavad Gita 18.44
Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas ।।18.44।। व्याख्या -- कृषिगौरक्ष्यवाणिज्यं वैश्यकर्म स्वभावजम् -- खेती करना? गायोंकी रक्षा करना? उनकी वंशवृद्धि करना और शुद्ध व्यापार …
Bhagavad Gita 5.2 – Saṃnyāsaḥ Karmayogaśca
श्रीभगवानुवाच ।संन्यासः कर्मयोगश्च निःश्रेयसकरावुभौ ।तयोस्तु कर्मसंन्यासात्कर्मयोगो विशिष्यते ॥2॥ śrībhagavānuvācasaṃnyāsaḥ karmayogaśca niḥśreyasakarāvubhautayostu karmasaṃnyāsātkarmayogo …
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Bhagavad Gita 18.43
Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas ।।18.43।। व्याख्या -- शौर्यम् -- मनमें अपने धर्मका पालन करनेकी तत्परता हो? धर्ममय युद्ध (टिप्पणी प0 928) प्राप्त …
Bhagavad Gita 18.42
Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas ।।18.42।। व्याख्या -- शमः -- मनको जहाँ लगाना चाहें? वहाँ लग जाय और जहाँसे हटाना चाहें? वहाँसे हट जाय -- इस प्रकार मनके निग्रहको शम …
Bhagavad Gita 18.41
Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas ।।18.41।। व्याख्या -- ब्राह्मणक्षत्रियविशां शूद्राणां च परंतप -- यहाँ ब्राह्मण? क्षत्रिय और वैश्य -- इन तीनोंके लिये एक पद और …