Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas ।।11.21।। व्याख्या--'अमी हि त्वां सुरसङ्घा विशन्ति'--जब अर्जुन स्वर्गमें गये थे, उस समय उनका जिन देवताओंसे परिचय हुआ था, उन्हीं देवताओंके लिये यहाँ अर्जुन …
Bhagavad Gita 11.20
Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas ।।11.20।। व्याख्या--'महात्मन्'-- इस सम्बोधनका तात्पर्य है कि आपके स्वरूपके समान किसीका स्वरूप हुआ नहीं, है नहीं, होगा नहीं और हो सकता भी नहीं। इसलिये …
Bhagavad Gita 11.19
Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas ।।11.19।। व्याख्या--'अनादिमध्यान्तम्'--आप आदि, मध्य और अन्तसे रहित हैं अर्थात् आपकी कोई सीमा नहीं है।सोलहवें श्लोकमें भी अर्जुनने कहा है कि मैं आपके आदि, …
Bhagavad Gita 11.48
Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas ।।11.48।। व्याख्या--'कुरुप्रवीर'--यहाँ अर्जुनके लिये 'कुरुप्रवीर' सम्बोधन देनेका अभिप्राय है कि सम्पूर्ण कुरुवंशियोंमें मेरेसे उपदेश सुननेकी, मेरे रूपको …
Bhagavad Gita 11.18
Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas ।।11.18।। व्याख्या--'त्वमक्षरं परमं वेदितव्यम्'-- वेदों, शास्त्रों, पुराणों, स्मृतियों, सन्तोंकी वाणियों और तत्त्वज्ञ जीवन्मुक्त महापुरुषोंद्वारा …
Bhagavad Gita 11.17
Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas ।।11.17।। व्याख्या--'किरीटिनं गदिनं चक्रिणं च'--आपको मैं किरीट, गदा और चक्र धारण किये हुए देख रहा हूँ। यहाँ 'च' पदसे शङ्क और पद्मको भी ले लेना …