Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas ।।11.45।। व्याख्या--[जैसे विराट्रूप दिखानेके लिये मैंने भगवान्से प्रार्थना की तो भगवान्ने मुझे विराट्रूप दिखा दिया, ऐसे ही देवरूप दिखानेके लिये प्रार्थना …
Bhagavad Gita 11.44
Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas ।।11.44।। व्याख्या--'तस्मात्प्रणम्य प्रणिधाय कायं प्रसादये त्वामहमीषमीड्यम्'--आप अनन्त ब्रह्माण्डोंके ईश्वर हैं। इसलिये सबके द्वारा स्तुति करनेयोग्य आप ही …
Bhagavad Gita 11.43
Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas ।।11.43।। व्याख्या--'पितासी लोकस्य चराचरस्य'--अनन्त ब्रह्माण्डोंमें मनुष्य, शरीर, पशु, पक्षी आदि जितने जङ्गम प्राणी हैं, और वृक्ष, लता आदि जितने स्थावर …
Bhagavad Gita 11.42
Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas ।।11.42।। व्याख्या--[जब अर्जुन विराट् भगवान्के अत्युग्र रूपको देखकर भयभीत होते हैं, तब वे भगवान्के कृष्णरूपको भूल जाते हैं और पूछ बैठते हैं कि उग्ररूपवाले …
Bhagavad Gita 11.41
Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas ।।11.41।। व्याख्या--[जब अर्जुन विराट् भगवान्के अत्युग्र रूपको देखकर भयभीत होते हैं, तब वे भगवान्के कृष्णरूपको भूल जाते हैं और पूछ बैठते हैं कि उग्ररूपवाले …
Bhagavad Gita 11.40
Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas ।।11.40।। व्याख्या--'नमः पुरस्तादथ पृष्ठतस्ते नमोऽस्तु ते सर्वत एव सर्व'--अर्जुन भयभीत हैं। मैं क्या बोलूँ-- यह उनकी समझमें नहीं आ रहा है। इसलिये वे आगेसे, …