Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas ।।11.52।। व्याख्या--'सुदुर्दर्शमिदं रूपं दृष्टवानसि यन्मम'--यहाँ 'सुदुर्दर्शम्' पद चतुर्भुजरूपके लिये ही आया है, विराट्रूप या द्विभुजरूपके लिये …
Bhagavad Gita 11.51
Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas ।।11.51।। व्याख्या--'दृष्ट्वेदं मानुषं रूपं तव सौम्यं जनार्दन'--आपके मनुष्यरूपमें प्रकट होकर लीला करनेवाले रूपको देखकर गायें, पशु-पक्षी, वृक्ष, लताएँ आदि …
Bhagavad Gita 11.50
Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas ।।11.50।। व्याख्या--'इत्यर्जुनं वासुदेवस्तथोक्त्वा स्वकं रूपं दर्शयामास भूयः'--अर्जुनने जब भगवान्से चतुर्भुजरूप होनेके लिये प्रार्थना की, तब भगवान्ने कहा …
Bhagavad Gita 11.49
Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas ।।11.49।। व्याख्या--'मा ते व्यथा मा च विमूढभावो दृष्ट्वा रूपं घोरमीदृङ्ममेदम्'--विकराल दाढ़ोंके कारण भयभीत करनेवाले मेरे मुखोंमें योद्धालोग बड़ी तेजीसे जा …
Bhagavad Gita 11.47
Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas ।।11.47।। व्याख्या --'मया प्रसन्नेन तवार्जुनेदं रूपं दर्शितम्'--हे अर्जुन ! तू बार-बार यह कह रहा है कि आप प्रसन्न हो जाओ (11। 25? 31? 45), तो प्यारे भैया ! …
Bhagavad Gita 11.46
Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas ।।11.46।। व्याख्या--'किरीटनं गदिनं चक्रहस्तमिच्छामि त्वां द्रष्टुमहं तथैव--जिसमें आपने सिरपर दिव्य मुकुट तथा हाथोंमें गदा और चक्र धारण कर रखे हैं, उसी …