Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas ।।12.7।। व्याख्या--'तेषामहं समुद्धर्ता ৷৷. मय्यावेशितचेतसाम्'--जिन साधकोंका लक्ष्य, उद्देश्य, ध्येय,भगवान् ही बन गये हैं और जिन्होंने भगवान्में ही अनन्य …
Bhagavad Gita 12.6
Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas ।।12.6।। व्याख्या--[ग्यारहवें अध्यायके पचपनवें श्लोकमें भगवान्ने अनन्य भक्तके लक्षणोंमें तीन विध्यात्मक '(मत्कर्मकृत्, …
Bhagavad Gita 12.5
Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas ।।12.5।। व्याख्या--'क्लेशोऽधिकतरस्तेषामव्यक्तासक्तचेतसाम्'--अव्यक्तमें आसक्त चित्तवाले-- इस विशेषणसे यहाँ उन साधकोंकी बात कही गयी है, जो निर्गुण-उपासनाको …
Bhgavad Gita 12.4
Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas ।।12.4।। व्याख्या --'तु'--यहाँ 'तु' पद साकार-उपासकोंसे निराकार-उपासकोंकी भिन्नता दिखानेके लिये आया है। 'संनियम्येन्द्रियग्रामम्' …
Bhagavad Gita 13.3
Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas ।।13.3।। व्याख्या -- क्षेत्रज्ञं चापि मां विद्धि सर्वक्षेत्रेषु भारत -- सम्पूर्ण क्षेत्रों(शरीरों)में मैं हूँ -- ऐसा जो अहंभाव है? …
Bhagavad Gita 12.3
Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas ।।12.3।। व्याख्या--'तु'--यहाँ 'तु' पद साकार-उपासकोंसे निराकार-उपासकोंकी भिन्नता दिखानेके लिये आया …