Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas ।।12.19।। व्याख्या--'समः शत्रौ च मित्रे च'--यहाँ भगवान्ने भक्तमें व्यक्तियोंके प्रति होनेवाली समताका वर्णन किया है। सर्वत्र भगवद्बुद्धि होने तथा …
Bhagavad Gita 12.18
Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas ।।12.18।। व्याख्या -- समः शत्रौ च मित्रे च -- यहाँ भगवान्ने भक्तमें व्यक्तियोंके प्रति होनेवाली समताका वर्णन किया है। सर्वत्र …
Bhagavad Gita 12.17
Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas ।।12.17।। व्याख्या--'यो न हृष्यति न द्वेष्टि न शोचति न काङ्क्षति'--मुख्य विकार चार हैं -- (1) राग, (2) द्वेष, (3) हर्ष और (4) शोक (टिप्पणी …
Bhagavad Gita 12.16
Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas ।।12.16।। व्याख्या--'अनपेक्षः'--भक्त भगवान्को ही सर्वश्रेष्ठ मानता है। उसकी दृष्टिमें भगवत्प्राप्तिसे बढ़कर दूसरा कोई लाभ नहीं होता। अतः संसारकी किसी भी …
Bhagavad Gita 12.15
Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas ।।12.15।। व्याख्या--'यस्मान्नोद्विजते लोकः'--भक्त सर्वत्र और सबमें अपने परमप्रिय प्रभुको ही देखता है। अतः उसकी दृष्टिमें मन, वाणी और शरीरसे होनेवाली …
Bhagavad Gita 12.14
Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas ।।12.14।। व्याख्या--'अद्वेष्टा सर्वभूतानाम्'--अनिष्ट करनेवालोंके दो भेद हैं -- (1) इष्टकी प्राप्तिमें अर्थात् धन, मान-बड़ाई, आदर-सत्कार आदिकी प्राप्तिमें …