Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas ।।15.6।। व्याख्या -- [छठा श्लोक पाँचवें और सातवें श्लोकोंको जोड़नेवाला है। इन श्लोकोंमें भगवान् यह बताते हैं कि वह अविनाशी पद मेरा ही धाम है? …
Bhagavad Gita 15.5
Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas ।।15.5।। व्याख्या -- निर्मानमोहाः -- शरीरमें मैंमेरापन होनेसे ही मान? आदरसत्कारकी इच्छा होती है। शरीरसे अपना सम्बन्ध माननेके कारण ही …
Bhagavad Gita 15.4
Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas ।।15.4।। व्याख्या--'ततः पदं तत्परिमार्गितव्यम्'--भगवान्ने पूर्वश्लोकमें 'छित्त्वा' पदसे संसारसे सम्बन्ध-विच्छेद करनेकी बात कही है। इससे यह सिद्ध …
Bhagavad Gita 15.3
Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas ।।15.3।। व्याख्या -- न रूपमस्येह तथोपलभ्यते -- इसी अध्यायके पहले श्लोकमें संसारवृक्षके विषयमें कहा गया है कि लोग इसको अव्यय (अविनाशी) …
Bhagavad Gita Chapter 18 Overview
मनुष्यमात्रके उद्धारके लिये उनकी रुचि, योग्यता और श्रद्धाके अनुसार तीन साधन बताये गये हैं-कर्मयोग, ज्ञानयोग और भक्तियोग (शरणागति)। इनमेंसे किसी भी एक साधनमें मनुष्य लग जाय तो उसका उद्धार हो जाता …
Bhagavad Gita Chapter 9 Overview
सभी मनुष्य भगवत्प्राप्तिके अधिकारी हैं, चाहे वे किसी भी वर्ण, आश्रम, सम्प्रदाय, देश, वेश आदिके क्यों न हों। वे सभी भगवान्की तरफ चल सकते हैं, भगवान्का आश्रय लेकर भगवान्को प्राप्त कर सकते …