Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas 16.5।।व्याख्या--'दैवी सम्पद्विमोक्षाय'--मेरेको भगवान्की तरफ ही चलना है -- यह भाव साधकमें जितना स्पष्टरूपसे आ जाता है, उतना ही वह भगवान्के सम्मुख हो जाता है। …
Bhagavad Gita 16.4
Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas ।।16.4।। व्याख्या -- दम्भः -- मान? बड़ाई? पूजा? ख्याति आदि प्राप्त करनेके लिये? अपनी वैसी स्थिति न होनेपर भी वैसी स्थिति दिखानेका नाम …
Bhagavad Gita 3.30 – Mayi Sarvāṇi Karmāṇi
मयि सर्वाणि कर्माणि संन्यस्याध्यात्मचेतसा ।निराशीर्निर्ममो भूत्वा युध्यस्व विगतज्वरः ॥30॥ mayi sarvāṇi karmāṇi saṃnyasyādhyātmacetasānirāśīrnirmamo bhūtvā yudhyasva vigatajvaraḥ Renouncing all …
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Bhagavad Gita 16.3
Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas ।।16.3।। व्याख्या--'तेजः'--महापुरुषोंका सङ्ग मिलनेपर उनके प्रभावसे प्रभावित होकर साधारण पुरुष भी दुर्गुण-दुराचारोंका त्याग करके सद्गुण-सदाचारोंमें लग जाते …
Bhagavad Gita 3.38 – Dhūmenāvriyate
धूमेनाव्रियते वह्निर्यथादर्शो मलेन च ।यथोल्बेनावृतो गर्भस्तथा तेनेदमावृतम् ॥38॥ dhūmenāvriyate vahniryathādarśo malena cayatholbenāvṛto garbhastathā tenedamāvṛtam dhūmena = by …
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Bhagavad Gita 16.2
Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas ।।16.2।। व्याख्या--'अहिंसा'--शरीर, मन, वाणी, भाव आदिके द्वारा किसीका भी किसी प्रकारसे अनिष्ट न करनेको तथा अनिष्ट न चाहनेको 'अहिंसा' कहते हैं। वास्तवमें …