Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas ।।16.19।। व्याख्या -- तानहं द्विषतः क्रूरान्संसारेषु नराधमान् -- सातवें अध्यायके पंद्रहवें और नवें अध्यायके बारहवें श्लोकमें वर्णित …
Bhagavad Gita 16.18
Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas ।।16.18।। व्याख्या -- अहंकारं बलं दर्पं कामं क्रोधं च संश्रिताः -- वे आसुर मनुष्य जो कुछ काम करेंगे? उसको अहङ्कार? हठ? घमण्ड? काम और …
Bhagavad Gita 16.17
Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas ।।16.17।। व्याख्या -- आत्मसम्भाविताः -- वे धन? मान? बड़ाई? आदर आदिकी दृष्टिसे अपने मनसे ही अपनेआपको बड़ा मानते हैं? पूज्य समझते हैं …
Bhagavad Gita 16.16
Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas ।।16.16।। व्याख्या -- अनेकचित्तविभ्रान्ताः -- उन आसुर मनुष्योंका एक निश्चय न होनेसे उनके मनमें अनेक तरहकी चाहना होती है? और उस एकएक …
Bhagavad Gita 16.15
Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas ।।16.15।। व्याख्या -- आसुर स्वभाववाले व्यक्ति अभिमानके परायण होकर इस प्रकारके मनोरथ करते हैं, -- आढ्योऽभिजनवानस्मि -- कितना धन हमारे …
Bhagavad Gita 3.10 – Saha-yajñāḥ
सहयज्ञाः प्रजाः सृष्ट्वा पुरोवाच प्रजापतिः ।अनेन प्रसविष्यध्वमेष वोऽस्त्विष्टकामधुक् ॥10॥ sahayajñāḥ prajāḥ sṛṣṭvā purovāca prajāpatiḥanena prasaviṣyadhvameṣa vo’stviṣṭakāmadhuk saha = …