Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas ।।16.17।। व्याख्या -- आत्मसम्भाविताः -- वे धन? मान? बड़ाई? आदर आदिकी दृष्टिसे अपने मनसे ही अपनेआपको बड़ा मानते हैं? पूज्य समझते हैं …
Bhagavad Gita 16.16
Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas ।।16.16।। व्याख्या -- अनेकचित्तविभ्रान्ताः -- उन आसुर मनुष्योंका एक निश्चय न होनेसे उनके मनमें अनेक तरहकी चाहना होती है? और उस एकएक …
Bhagavad Gita 16.15
Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas ।।16.15।। व्याख्या -- आसुर स्वभाववाले व्यक्ति अभिमानके परायण होकर इस प्रकारके मनोरथ करते हैं, -- आढ्योऽभिजनवानस्मि -- कितना धन हमारे …
Bhagavad Gita 3.10 – Saha-yajñāḥ
सहयज्ञाः प्रजाः सृष्ट्वा पुरोवाच प्रजापतिः ।अनेन प्रसविष्यध्वमेष वोऽस्त्विष्टकामधुक् ॥10॥ sahayajñāḥ prajāḥ sṛṣṭvā purovāca prajāpatiḥanena prasaviṣyadhvameṣa vo’stviṣṭakāmadhuk saha = …
Bhagavad Gita 16.14
Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas ।।16.14।। व्याख्या -- आसुरीसम्पदावाले व्यक्ति क्रोधके परायण होकर इस प्रकारके मनोरथ करते हैं -- असौ मया हतः शत्रुः -- वह हमारे विपरीत …
Bhagavad Gita 3.36 – Atha Kena Prayukto
अर्जुन उवाच ।अथ केन प्रयुक्तोऽयं पापं चरति पूरुषः ।अनिच्छन्नपि वार्ष्णेय बलादिव नियोजितः ॥36॥ arjuna uvācaatha kena prayukto’yaṃ pāpaṃ carati pūruṣaḥanicchannapi vārṣṇeya balādiva …
Continue Reading about Bhagavad Gita 3.36 – Atha Kena Prayukto →