Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas ।।18.6।। व्याख्या -- एतान्यपि तु कर्माणि ৷৷. निश्चितं मतमुत्तमम् -- यहाँ एतानि पदसे पूर्वश्लोकमें कहे यज्ञ? दान और तपरूप …
Bhagavad Gita 18.5
Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas ।।18.5।। व्याख्या -- यज्ञदानतपःकर्म न त्याज्यं कार्यमेव तत् -- यहाँ भगवान्ने दूसरोंके मत (18। 3) को ठीक बताया है। भगवान् कठोर …
Bhagavad Gita 18.4
Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas ।।18.4।। व्याख्या -- निश्चयं श्रृणु मे तत्र त्यागे भरतसत्तम -- हे भरतवंशियोंमें श्रेष्ठ अर्जुन अब मैं संन्यास और त्याग -- दोनोंमेंसे …
Bhagavad Gita 5.4 – Sāṅkhyayogau Pṛthagbālāḥ
साङ्ख्ययोगौ पृथग्बालाः प्रवदन्ति न पण्डिताः ।एकमप्यास्थितः सम्यगुभयोर्विन्दते फलम् ॥4॥ sāṅkhyayogau pṛthagbālāḥ pravadanti na paṇḍitāḥekamapyāsthitaḥ samyagubhayorvindate phalam sāṅkhya = …
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Bhagavad Gita 18.3
Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas ।।18.3।। व्याख्या -- दार्शनिक विद्वानोंके चार मत हैं --,1 -- काम्यानां कर्मणां न्यासं संन्यासं कवयो विदुः -- कई विद्वान् कहते हैं कि …
Bhagavad Gita 18.2
Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas ।।18.2।। व्याख्या -- दार्शनिक विद्वानोंके चार मत हैं --,1 -- काम्यानां कर्मणां न्यासं संन्यासं कवयो विदुः -- कई विद्वान् कहते हैं कि …