Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas ।।18.22।। व्याख्या -- यत्तु (टिप्पणी प0 904.2) कृत्स्नवदेकस्मिन्कार्ये सक्तम् -- तामस मनुष्य एक ही शरीरमें सम्पूर्णकी …
Bhagavad Gita 18.21
Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas ।।18.21।। व्याख्या -- पृथक्त्वेन तु (टिप्पणी प0 904.1) यज्ज्ञानं नानाभावान् पृथग्विधान् -- राजस ज्ञानमें राग की मुख्यता होती है …
Bhagavad Gita 18.20
Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas ।।18.20।। व्याख्या -- सर्वभूतेषु येनैकं ৷৷. अविभक्तं विभक्तेषु -- व्यक्ति? वस्तु आदिमें जो है पन दीखता है? वह उन व्यक्ति? वस्तु आदिका …
Bhagavad Gita 18.19
Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas ।।18.19।। व्याख्या -- प्रोच्यते गुणसंख्याने -- जिस शास्त्रमें गुणोंके सम्बन्धसे प्रत्येक पदार्थके भिन्नभिन्न भेदोंकी गणना की गयी है? …
Bhagavad Gita 18.18
Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas ।।18.18।। व्याख्या -- [इसी अध्यायके चौदहवें श्लोकमें भगवान्ने कर्मोंके बननेमें पाँच हेतु बताये -- अधिष्ठान? कर्ता? करण? चेष्टा और दैव …
Bhagavad Gita 18.17
Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas ।।18.17।। व्याख्या -- यस्य नाहंकृतो भावो बुद्धिर्यस्य न लिप्यते -- जिसे मैं करता हूँ -- ऐसा अहंकृतभाव नहीं है और जिसकी बुद्धिमें …