Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas ।।1.42।। व्याख्या--'सङ्करो नरकायैव कुलघ्नानां कुलस्य च'-- वर्ण-मिश्रणसे पैदा हुए वर्णसंकर-(सन्तान-) में धार्मिक बुद्धि नहीं होती। वह मर्यादाओंका पालन …
Bhagavad Gita 1.41
Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas ।।1.41।। व्याख्या--'अधर्माभिभवात्कृष्ण ৷৷. प्रदुष्यन्ति कुलस्त्रियः'-- धर्मका पालन करनेसे अन्तःकरण शुद्ध हो जाता है। अन्तःकरण शुद्ध होनेसे बुद्धि …
Bhagavad Gita 1.40
Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas।।1.40।। व्याख्या --'कुलक्षये प्रणश्यन्ति कुलधर्माः सनातनाः'-- जब युद्ध होता है तब उसमें कुल-(वंश-) का क्षय (ह्रास) होता है। जबसे कुल आरम्भ हुआ है, तभीसे कुलके धर्म …
Bhagavad Gita 1.39
Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas ।।1.39।। व्याख्या-- 'यद्यप्येते न पश्यन्ति ৷৷. मित्रद्रोहे च पातकम्'-- इतना मिल गया, इतना और मिल जाय; फिर ऐसा मिलता ही रहे--ऐसे धन, जमीन, मकान, …
Bhagavad Gita 1.38
Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas ।।1.38।। व्याख्या--'यद्यप्येते न पश्यन्ति ৷৷. मित्रद्रोहे च पातकम्'--इतना मिल गया, इतना और मिल जाय; फिर ऐसा मिलता ही रहे--ऐसे धन, जमीन, मकान, आदर, प्रशंसा, …
Bhagavad Gita 1.37
Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas 1.37।। व्याख्या-- 'तस्मान्नार्हा वयं हन्तुं धार्तराष्ट्रान् स्वबान्धवान्'-- अभीतक (1। 28 से लेकर यहाँतक) मैंने कुटुम्बियोंको न मारनेमें …