Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas ।।18.30।। व्याख्या -- प्रवृत्तिं च निवृत्तिं च -- साधकमात्रकी प्रवृत्ति और निवृत्ति -- ये दो अवस्थाएँ होती हैं। कभी वह संसारका …
Bhagavad Gita 18.29
Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas ।।18.29।। व्याख्या -- [इसी अध्यायके अठारहवें श्लोकमें कर्मसंग्रहके तीन हेतु बताये गये हैं -- करण? कर्म और कर्ता। इनमेंसे कर्म करनेके जो …
Bhagavad Gita 18.28
Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas ।।18.28।। व्याख्या -- अयुक्तः -- तमोगुण मनुष्यको मूढ़ बना देता है (गीता 14। 8)। इस कारण किस समयमें कौनसा काम करना चाहिये किस तरह …
Bhagavad Gita 18.27
Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas ।।18.27।। व्याख्या -- रागी -- रागका स्वरूप रजोगुण होनेके कारण भगवान्ने राजस कर्ताके लक्षणोंमें,सबसे पहले रागी पद दिया है। रागका अर्थ …
Bhagavad Gita 18.26
Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas ।।18.26।। व्याख्या -- मुक्तसङ्गः -- जैसे सांख्ययोगीका कर्मोंके साथ राग नहीं होता? ऐसे सात्त्विक कर्ता भी रागरहित होता है।कामना? …
Bhagavad Gita 18.25
Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas ।।18.25।। व्याख्या -- अनुबन्धम् -- जिसको फलकी कामना होती है? वह मनुष्य तो फलप्राप्तिके लिये विचारपूर्वक कर्म करता है? परन्तु तामस …