Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas ।।6.47।। व्याख्या--'योगिनामपि सर्वेषाम्'--जिनमें जडतासे सम्बन्ध-विच्छेद करनेकी मुख्यता है, जो कर्मयोग, सांख्ययोग, हठयोग, मन्त्रयोग, लययोग आदि साधनोंके …
Bhagavad Gita 6.46
Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas ।।6.46।। व्याख्या--'तपस्विभ्योऽधिको योगी'--ऋद्धि-सिद्धि आदिको पानेके लिये जो भूख-प्यास, सरदी-गरमी, आदिका कष्ट सहते हैं, वे तपस्वी हैं। इन सकाम तपस्वियोंसे …
Bhagavad Gita 6.45
Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas ।।6.45।। व्याख्या--[वैराग्यवान् योगभ्रष्ट तो तत्त्वज्ञ जीवन्मुक्त योगियोंके कुलमें जन्म लेने और वहाँ विशेषतासे यत्न करनेके कारण सुगमतासे परमात्माको प्राप्त …
Bhagavad Gita 6.44
Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas ।।6.44।। व्याख्या--पूर्वाभ्यासेन तेनैव ह्रियते ह्यवशोऽपि सः--योगियोंके कुलमें जन्म लेनेवाले योगभ्रष्टको जैसी साधनकी सुविधा मिलती है, जैसा वायुमण्डल मिलता …
Bhagavad Gita 6.43
Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas ।।6.43।। व्याख्या--'तत्र तं बुद्धिसंयोगं लभते पौर्वदेहिकम्'--तत्त्वज्ञ जीवन्मुक्त महापुरुषोंके कुलमें जन्म होनेके बाद उस वैराग्यवान् साधककी क्या दशा होती …
Bhagavad Gita 6.42
Hindi Commentary By Swami Ramsukhdas ।।6.42।। व्याख्या--[साधन करनेवाले दो तरहके होते हैं वासनासहित और वासनारहित। जिसको साधन अच्छा लगता है, जिसकी साधनमें रुचि हो जाती है और जो परमात्माकी …